घुटन सी है..


तुम्हारे झूठ को मुझसे नहीं सुना जाता
तेरे बनावटी किस्सों से अब ऊबन सी है

बड़े घरों में हैं रहते, दिलों में तंगी है
नहीं बसर मेरी दिल में तेरे घुटन सी है

बड़ा अजीब है लहजा तेरा ख़लिश से भरा
ज़ुबानी तीर से दिल में मची चुभन सी है

बुलाके महफिलों में फिर तेरा चले जाना
अकेले भीड़ में रहने से इक कुढ़न सी है

कहाँ का प्यार और कहाँ कि उल्फतें साहब
दिलों में उलझने सीने में क्यों जलन सी है

               -- दीपक शर्मा 'सार्थक'
         
             










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