मा मा

उस समय महमूदाबाद क्रासिंग पर पहुचा ही था  कि मोबाइल पर दीदी ने ये दु:खद सूचना देदी की बड़े मामा नहीं रहे।थोड़ी देर के लिए मैं कंकर्तव्यविमूढ़ स्थित में खड़ा रहा।क्रासिंग खुल गई थी और मैं बाइक से अपने गाँव की ओर चल दिया,गाँव से महमूदाबाद के इस 35 किमी के सफर में मामा से जुड़ी हर छोटी छोटी बात ( क्योंकि बड़ी बात कोई थी ही नहीं) मेरी आँखों के फिल्म की रील की तरह घूम रही थी।
बड़ा ही यायावर और फक्कड़ सा अंदाज़ था उनका। वो ऊँचा सुनते थे..शायद इसी लिए अपनी ही धुन में रहते थे। बच्चों से अगल तरीके का आत्मिक प्रेम था उनका...हर एक बच्चे के लिए एक दो लाइनो का कोई गीत बना लेते थे और उस बच्चे को देखकर ज़ोर-ज़ोर से गाने लगते। कभी-कभी अकेले में बैठ के न जाने कौन सी धुन में कुछ गुनगुनाने लगते। वो धुन..वो बोल आज तक समझ नहीं आए।
उनसे आखरी मुलाकात लखनऊ वाले घर पर हुई थी।पहले से थोड़ा कमज़ोर दिख रहे थे।मैने ये बात उनसे कही भी पर वो मुस्कुराकर टाल गए। फिर वो मुझसे मेरे हाल चाल लेने लगे।उनसे बात करते समय ज़ोर से बोलना पड़ता था..शायद इसीलिए मैं उनसे बात करने से जी चुराता था। मेरे ट्रांसफर को लेकर मुझे दो तीन लोगों से मिलाने की बात करने लगे.. वो बोलते जा रहे थे और मैं उनके आत्मीय चहरे को ध्यान से देखते हुए हाँ..हूँ करता रहा। फिर उन्होंने कपड़े के बने उस झोले में हाँथ डालकर एक मटमैली सी पतली डायरी निकाली, जिसे वो जहाँ भी जाते थे..साथ लेकर जाते थे।वो  मुझे डायरी में कुछ नंबर दिखा कर बताते जा रहे थे कि ये नंबर कौन-कौन से अधिकारी के हैं।मुझे उसमें कुछ समझ नहीं आ रहा था पर उनके उत्तेजना और प्रसन्नता के मिश्रण से बने चहरे को देखकर मैं डायरी पर नज़रे गढ़ाए रहा।उस वक्त मुझे नहीं पता था कि ये मेरी उनसे आखरी मुलाकात है।
कुछ बातें उनकी परेशान भी करती थी।शाम को 7:20 के समाचार रेडियो को अपने कान के पास ले जाकर फुल वैलूम में सुनते लगते...जैसे अगल-बगल कोई हो ही ना। घर वालो को बिना सूचना दिए..दो तीन दिन के लिए गायब हो जाते। जब मै उनके अन्तिम दर्शन को पहुचा तो वहाँ कई ऐसे लोग दिखे जो उनके लिए आंसू बहा रहे थे।
किसी की उन्होंने राशनकार्ड बनाने में मदद की थी..तो किसी को रसोई गैस सिलेन्डर दिलाने में उसके साथ दौड़ा भागी की थी।ऐसे ही कामो में वो व्यस्त रहते थे।
वो न कोई बड़ी राजनीतिक हस्ती थे, न साहित्यकार थे और न ही उनको किसी क्षेत्र में प्रशिद्धि हासिल थी। पर वो अपने आप में अनोखे थे। उनका व्यक्तित्व हर किसी को प्यारा था। हर आँख में उनके लिए अांसू थे।
आज वो दुनियां में नहीं हैं पर उनकी अमिट छाप हमेशा मेरे हृदय में रहेगी।

                      --दीपक शर्मा 'सार्थक'

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