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Showing posts from June, 2017

फ़ितरत बदलने से तेरी हैरान नहीं हूँ...

करते हो साज़िशे समझ के बेख़बर मुझे रहता हूँ चुप मगर कोई अंजान नहीं हूँ पहले से ही किरदार से वाकिफ़ हूँ तेरे मैं फितरत बदलने से तेरी हैरान नहीं हूँ कैसा हूँ मैं, ये दूर से क़यास मत लगा अफ़सोस इस क़दर भी मैं आसान नहीं हूँ छेड़ो नहीं कहीं कि न आ जाए जलजला हल्के से गुज़र जाए वो तूफान नहीं हूँ जो कह दिया उसी पे हूँ क़ायम, ख़ुदा क़सम ! सरकार का दिया कोई फ़रमान नहीं हूँ मज़हब के नाम पर मैं नहीं ख़ून बहाता काफ़िर तो हूँ मगर कोई हैवान नहीं हूँ अपने ही जब लगे डुबाने नाव को मेरी ख़ुद को नहीं बचाऊं यूँ नादान नहीं हूँ अब तो ग़मो में भी मुझे आ जाती है हँसी सुन ले ऐ जिन्दगी ! मैं परेशान नहीं हूँ         -- © दीपक शर्मा 'सार्थक'

गीत लिख दे तू...

चल आज कोई एक अच्छा गीत लिख दे तू बजती घटाओ सा मधुर संगीत लिख दे तू खिझते झिझकते पास आने से जो शरमाए उसकी हथेली थाम के मनमीत लिख दे तू चल आज कोई एक अच्छा गीत लिख दे तू... फैला बहारों सा चमन में प्यार का आंचल खिलती हुई कलियों पे अपनी प्रीत लिख दे तू चल आज कोई एक अच्छा गीत लिख दे तू... सारा ज़माना प्यार से मरहूम लगता है हर दिल को जो रौशन करे वो रीत लिख दे तू चल आज कोई एक अच्छा गीत लिख दे तू... लड़ते झगड़ते  नफ़रतो के साथ है जीते तल्ख़ी मिटाकर, प्यार की बस जीत लिख दे तू चल आज कोई एक अच्छा गीत लिख दे तू बजती घटाओ सा कोई संगीत लिख दे तू...             -- © दीपक शर्मा 'सार्थक'

ये दौर तो है बस बातों का..

मतलब के रिश्ते नातों का ये दौर तो है बस बातों का... उगते सूरज की याद नहीं उजियाले का अहसास नहीं कामुक अश्लील हवस से भरी हर किस्सा है बस रातों का मतलब के रिश्ते नातों का ये दौर तो है बस बातों का... चाहे ईमान बदल जाए कैसे भी काम निकल जाए लालच का पर्दा आँखो पर रोना रोएं हालातों का मतलब के रिश्ते नातों का ये दौर तो है बस बातों का... पहले तो गले से लगाएंगे फिर ख़न्जर पीठ पे मारेंगे अपनों के हाथ हैं खून सने ये काम है उनके हाथों का मतलब के रिश्ते नातों का ये दौर तो है बस बातों का... तेरी हस्ती ही मिटा देगा ये देश की नाव डुबा देगा वो नेता मुझको रास नहीं जो भूखा हो बस लातों का मतलब के रिश्ते नातो का ये दौर तो है बस बातों का...                  -- © दीपक शर्मा 'सार्थक'

सैलाब जो दिल में रखते हैं..

हल्की बूंदों की बारिश में तिनके जैसे बह जाते हो कुछ हाल ज़रा उनका पूछो सैलाब जो दिल में रखते हैं छोटी सी बात लगी दिल पे आ जाते हैं आंसू आंखों में कुछ लोग जिगर पे घाव लिए दिल खोल के ग़म में हंसते हैं कभी ठेस जो थोड़ी लग जाए दिल थाम के आहें भरते हो कुछ ऐसे भी ग़म के मारे हैं जो टूट के रोज बिखरते हैं दो क़दम भी साथ न चल पाए और बात वफ़ा की करते हो हम प्यार में चाहे मर जाएं पर हाथ पकड़ कर चलते हैं          -- दीपक शर्मा 'सार्थक'

घुटन सी है..

तुम्हारे झूठ को मुझसे नहीं सुना जाता तेरे बनावटी किस्सों से अब ऊबन सी है बड़े घरों में हैं रहते, दिलों में तंगी है नहीं बसर मेरी दिल में तेरे घुटन सी है बड़ा अजीब है लहजा तेरा ख़लिश से भरा ज़ुबानी तीर से दिल में मची चुभन सी है बुलाके महफिलों में फिर तेरा चले जाना अकेले भीड़ में रहने से इक कुढ़न सी है कहाँ का प्यार और कहाँ कि उल्फतें साहब दिलों में उलझने सीने में क्यों जलन सी है                -- दीपक शर्मा 'सार्थक'                        

मा मा

उस समय महमूदाबाद क्रासिंग पर पहुचा ही था  कि मोबाइल पर दीदी ने ये दु:खद सूचना देदी की बड़े मामा नहीं रहे।थोड़ी देर के लिए मैं कंकर्तव्यविमूढ़ स्थित में खड़ा रहा।क्रासिंग खुल गई थी और मैं बाइक से अपने गाँव की ओर चल दिया,गाँव से महमूदाबाद के इस 35 किमी के सफर में मामा से जुड़ी हर छोटी छोटी बात ( क्योंकि बड़ी बात कोई थी ही नहीं) मेरी आँखों के फिल्म की रील की तरह घूम रही थी। बड़ा ही यायावर और फक्कड़ सा अंदाज़ था उनका। वो ऊँचा सुनते थे..शायद इसी लिए अपनी ही धुन में रहते थे। बच्चों से अगल तरीके का आत्मिक प्रेम था उनका...हर एक बच्चे के लिए एक दो लाइनो का कोई गीत बना लेते थे और उस बच्चे को देखकर ज़ोर-ज़ोर से गाने लगते। कभी-कभी अकेले में बैठ के न जाने कौन सी धुन में कुछ गुनगुनाने लगते। वो धुन..वो बोल आज तक समझ नहीं आए। उनसे आखरी मुलाकात लखनऊ वाले घर पर हुई थी।पहले से थोड़ा कमज़ोर दिख रहे थे।मैने ये बात उनसे कही भी पर वो मुस्कुराकर टाल गए। फिर वो मुझसे मेरे हाल चाल लेने लगे।उनसे बात करते समय ज़ोर से बोलना पड़ता था..शायद इसीलिए मैं उनसे बात करने से जी चुराता था। मेरे ट्रांसफर को लेकर मुझे ...