किस काम का सावन
रह गया है किस काम का सावन है प्यारे बस नाम का सावन नज़र नहीं आते पेड़ों पर पहले जैसे झूले व्यस्त हैं सब दुनियादारी में रिश्ते नाते भूले बने विदूषक फिरते हैं अब इंस्टा पर ये नचनिये कजरी और मल्हार के बदले रैप में गाली सुनिए हरियाली और तीज है गायब किसको याद करेगा सावन ! रह गया है ..... पुरवाई में ज़हर घुला है धुंधला हुआ नज़ारा नहीं भीगता बारिश में अब बच्चा कोई बेचारा गांवों में चौपाल न लगती दूषित हुई फुहारें द्वेष लिए फिरते हृदयों में कैसे कोई उबारे बंजर अंतःकरण को आखिर कब तक यूं सींचेगा सावन ! रह गया है .... © दीपक शर्मा ’सार्थक’