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राम स्तुति

रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे! त्रिगुणातीत त्रिलोकमय हैं त्रिविक्रमं, दशरथ तनय। वो तत्वदर्शी तपोमय नित  तमरहित सीता प्रणय।। अज्ञेय अविरत नेति-नेति सारे प्रतीकों से परे ! रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे ! वेदांतपार विवेकमय वाचस्पति अभिराम हैं। विश्र्वेश प्रेम के व्योम वो  वैधीश हैं अविराम हैं ।। क्षण में ही करते हैं क्षमा वरप्रद सदा करुणा भरे ! रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे ! मायापती मंजुल मनोहर मृदुल मति मायारहित । मन से वो मर्यादित मुदित  निज भक्त का करते हैं हित ।। सर्वज्ञ हैं सर्वत्र हैं  साकार हैं जो चित धरे ! रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे ! सारंग सर संधान कर खल कुल सहित संहार कर। सर्वोपरि: सुर संत हित  सानिध्य का उद्धार कर।। समदृष्टि सब पर शौम्य हैं सदबुद्धि के संग हैं खड़े ! रम राम नाम, प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे !         ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

और डूब के जाना है

प्रेम में जो बह गए  नदी की तरह प्रेम में जो ढह गए  हिम खंडों की तरह वो जा मिलते हैं समुद्र से  और पा लेते हैं अपनी मंजिल ! पर जो प्रेम नहीं बहते  नदी की तरह  वो हो जाते हैं बहाव रहित  गड्ढे में भरे जल की तरह! फिर वो लगते हैं सड़ने  जमने लगती है काई  फैलाते हैं दुर्गंध  और फिर जाते हैं सूख! प्रेम में जो टूट गए  पके फल की तरह  समझो तर गए  वो कर के खुद को नष्ट  बीज से बन जाता है वृक्ष ! पर जो नहीं टूटे  आसानी से और चिपके रहते हैं  अपने डंठल से  वो रह जाते हैं अधकचरे  पड़ते हैं उनमें कीड़े  कहने को होते हैं जिंदा  पर मरघट है उनका वज़ूद!            ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

धर्म संकट

" पंडित जी क्या हाल चाल हैं?" "बढ़िया है मौलवी साहब..अपने हाल चाल बताएं" पंडित जी ने शॉर्ट में अपने हाल चाल बताकर लगे हाथ मौलवी जी से भी उनके हाल पूछ लिए।  "ख़ुदा की रहमत हैं पंडित जी" मौलवी साहब ने हर चीज़ में ख़ुदा को इनवाल्व कर लेने वाली अपनी चिर परिचित आदत के अनुसार उत्तर दिया।  तब तक उधर से फादर डिसिल्वा निकल पड़े और अपने मित्र पंडित जी और मौलवी जी को एक साथ बात करते देख मजाक में बोले, " क्या बात है भाई, आज भगवान और ख़ुदा के बंदों के बीच क्या खिचड़ी पक रही है!" पंडित जी हंस कर बोले, हां..हां आप भी आ जाइए..बस क्राइस्ट की ही कमी थी।" पंडित जी की बात पर तीनों लोग हँसने लगे। फिर बातों-बातों में बात बढ़ी की तीनों लोग अपने अपने धर्म को लेकर तर्क करने लगे।   उनके तर्क का मुद्दा आज की परिस्थितियों को लेकर नहीं बल्कि इस बात पर था कि भविष्य में कौन सा धर्म धरती पर सबसे अधिक फैलेगा।  मौलवी जी अपने धर्म कि तरफ से तर्क देते हुए बोले, "इस बात पर सभी समाजशास्त्री सहमत हैं कि दुनियां में सबसे तेजी से फैलने वाला धर्म इस्लाम है। भविष्य में संसाधनों ...

हम और अहंकार

सबसे अच्छा धर्म हमारा है  क्योंकि हमारे जैसा महान आदमी  इस धर्म को मानता है ! सबसे अच्छी जाति हमारी है  क्योंकि 'हम' इस जाति में  पैदा हुए हैं ! सबसे अच्छा देश हमारा है  क्योंकि 'हम' इस देश में  पैदा हुए हैं ! सबसे अच्छी हमारी भाषा है  क्योंकि इसे 'हम' बोलते हैं  सबसे अच्छे हमारे ईश्वर हैं ! क्योंकि हमारे जैसे महान आदमी  उनकी पूजा करता है ! कुल मिलाकर  वर्ल्ड - हम = ज़ीरो  वैसे तो हम दो कौड़ी के हैं  पर हम अकेले नहीं   हमारे साथ हमारा अहंकार है  जिसने हमें महान बना रखा है              ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'  

मूल्यांकन

वैसे तो हर इंसान का किसी दूसरे इंसान का मूल्यांकन करने का अपना एक अलग मैथेड होता है। और ये पूरी तरह व्यक्तिगत मसला है। पर मैं किसी को कैसे जेज करता हूँ, ये बिना किसी लाग लपेट के आप से साझा कर रहा हूं- 1- अगर कोई मेरे सामने चाय की जगह कॉफी की तारीफ करता तो समझ लो अपना पूरा सम्मान मेरी नजरो में खो बैठा।  2- अगर कोई व्यक्ति पुराने गाने खास कर मो. रफी किशोर और लता के गाने पसन्द करता है तो वो उसपर भरोसा कर सकता हूँ।  3- हनी सिंह को सुनने वालों को देख के गुस्सा आता है..जैसे मेरी कोई व्यक्तिगत खुन्नस हो।  4- कुमार सानू के गाने सुनने वालों के प्रति लखनऊ के टैंम्पू चालकों के जैसी फिलिंग आती है। भले ही वो टैक्सिडो पहने हो।  5- गुलाम अली,  जगजीत सिंह की ग़ज़लें सुनने वालों को बुद्धिमान समझता हूं।  6- जिसकी the dark night , फेवरेट मूवी है, और जो jonny depp को पसन्द करता है वो तो समझो अपना भाई है।  7- जिसको श्याम बेनेगल,  ऋषिकेश मुखर्जी, की फ़िल्में पसन्द है..वो मुझे पसन्द है..भले ही उसमे सौ ऐब हों।  8 - जिसको साहित्य छू कर भी निकल गया है। उसे भावनात्मक व...

याद रखा जाएगा

गिर पड़े तो क्या हुआ हम फिर खड़े हो जाएंगे  पर तेरे जुल्मों सितम को  याद रखा जाएगा ! तू ख़ुदा है और तेरे  वश में सभी इंसान हैं  तेरे इस वहशी भरम को  याद रखा जाएगा ! हर तरफ दहशत तेरी  और खौफ़ का अम्बार है  दर्द देने के चरम को  याद रखा जाएगा ! है बड़ा मगरूर जो तू  इंकलाबों को कुचल कर  पर मिले तुझसे जख़म को  याद रखा जाएगा !          ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

बीमा जबरदस्ती की विषय वस्तु है

पता नहीं बजट को लेकर लोगों में इतना उत्साह क्यों होता है। वित्तमंत्री के हाइपोथेटिकल भाषण और उसके बाद कूड़ा न्यूज चैनलों पर नेताओं की लप्फेबाजी को अगर किनारे कर दिया जाए तो हर बार बजट बच्चों को सुनाई गई परियों की कहानी की तरह होता है। जिसमे कुछ हकीकत नहीं होती। बजट के बाद जो रिवाइज्ड आकड़े आते हैं,वो इन परियों की कहानी में पलीता लगा देते हैं। खर्च करने के लिए एक लाख रूपये बताते हैं..और अंत तक पांच हजार करोड़ भी नहीं कर पाते हैं।  हर बजट में इसी के साथ सरकारी परिसंपत्तियों को बेचने की हवस भी जिसे शुद्ध भाषा में 'विनिवेश' कहा जाता है, वो दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। इसी में एलआईसी का भी नाम जुड़ गया।इसका ये मतलब नहीं है कि मैं एलआईसी को सरकार द्वारा बेचने के निर्णय को लेकर दुःखी हूँ। बल्कि मुझे तो बीमा शब्द से ही समस्या है। हाँ..इतना जरूर है इसके प्राइवेट हाथों में जाने से इसका और वीभत्स रूप सामने निकल के आएगा..इससे डरता हूँ।   मेरी नजर में इंश्योरेंस सेक्टर, मुनाफाखोर साहुकारों द्वारा गढ़ा गया एक ऐसा आभासी व्यापार है। जो गांव की उस कहावत पर आधारित है जिसमें कहा जाता है, ...