भवसागर भी तर जायेंगे

भवसागर भी तर जाएंगे 
यदि आप हमें मिल जाएंगे

लम्हों की बात नहीं है ये
आजीवन तुमको पूजा है
हो भीड़ भले जग में कितनी
प्रतिपल तुमको ही खोजा है
जितने भी घाव हृदय के हैं
पाकर तुमको सिल जाएंगे
भवसागर भी तर जाएंगे 
यदि आप हमें मिल जाएंगे (१)

जो चित्र बसा चित में मेरे
हर दृष्टि में वो ही दिखते हैं
इन गीत गज़ल और छंदों में
अभिव्यक्त तुम्हें ही करते हैं
हर पुष्प हृदय के उपवन में
तुम देखो बस खिल जाएंगे
भवसागर भी तर जाएंगे
यदि आप हमें मिल जाएंगे (२)

            © दीपक शर्मा ’सार्थक’

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