Posts

Showing posts from February, 2024

रौशनी से नहाए हुए हैं

हक़ीकत से नज़रें चुराए हुए हैं ज़खम हर किसी से छुपाए हुए हैं जो हमदर्द बनकर चले साथ मेरे है सच हम उन्हीं के सताए हुए हैं ये खंडहर कभी थे मीनार-ए-मोहब्बत सितमग़र के हाथो गिराए हुए हैं बहुत ही घिनौनी हक़ीकत है जिनकी शराफ़त के चहरे लगाए हुए हैं नहीं है वज़न जिनकी बातों में एकदम वही शोर तबसे मचाए हुए हैं मदद में जो उनकी, था आया उसे ही बली का वो बकरा बनाए हुए हैं कभी सूरत-ए-हाल बदलेगा इक दिन उसी के ही सपने सजाए हुए हैं भले दर्द सह के जले बनके ’दीपक’ मगर रौशनी से नहाए हुए हैं                     © दीपक शर्मा ’सार्थक’

भवसागर भी तर जायेंगे

भवसागर भी तर जाएंगे  यदि आप हमें मिल जाएंगे लम्हों की बात नहीं है ये आजीवन तुमको पूजा है हो भीड़ भले जग में कितनी प्रतिपल तुमको ही खोजा है जितने भी घाव हृदय के हैं पाकर तुमको सिल जाएंगे भवसागर भी तर जाएंगे  यदि आप हमें मिल जाएंगे (१) जो चित्र बसा चित में मेरे हर दृष्टि में वो ही दिखते हैं इन गीत गज़ल और छंदों में अभिव्यक्त तुम्हें ही करते हैं हर पुष्प हृदय के उपवन में तुम देखो बस खिल जाएंगे भवसागर भी तर जाएंगे यदि आप हमें मिल जाएंगे (२)             © दीपक शर्मा ’सार्थक’

दधीचि और दान

भारत सदा से ही ऋषि मुनियों दार्शनिकों और विद्वानों की भूमि रही है। इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब पूरा यूरोप, जो खुद को आधुनिक सभ्यता के विकास का इंजन समझ रहा है, वो आज से 2500 साल पहले जब मात्र पेट भरने के लिए दर–दर भटकते खानाबदोश वाला जीवन जी रहा था। तब भारत में वेदों के साथ–साथ चार्वाक, न्याय,जैन, बौद्ध जैसे दर्शनों का उद्भव हो चुका था। इसी वैदिक परंपरा में आज के उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का पवित्र नैमिषारण्य स्थान अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों की तपस्थली हुआ करता था। और इसी के पास स्थित मिश्रिख में महर्षि दधीचि का आश्रम था। एक ऐसे महर्षि जो त्याग और दान पर्याय हो गए।जिन्होंने लोकहित में जीते जी अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया।  महर्षि दधीचि को समझने से पहले ये समझना जरूरी है कि आखिर दान क्या है ? इसे महाभारत काल की एक छोटी सी कहानी से समझते हैं। कर्ण के दानवीर होने का यश चारो ओर फैला था। अर्जुन को इससे ईर्ष्या हुई, और एक दिन वो कृष्ण से बोले, “प्रभु! लोग बिना मतलब ही कर्ण के दानवीर होने का यशगान करते फिरते हैं, जबकि मेरे बड़े भाई सम्राट युधिष्ठिर कर्ण से कई गुना ज्यादा रोज द...

दूरदर्शी बजट

इस बजट की सबसे मुख्य बात ये बहुत ही दूरदर्शी बजट है। बजट इतना दूरदर्शी है की मध्यवर्ग को इसके दूर से ही दर्शन हो रहे हैं। ये बजट इसीलिए दूरदर्शी है क्योंकि बजट बनाने वालों को पहले से ही भरोसा है कि वो आम चुनाव जीत रहे हैं।इसीलिए जो आम आदमी को दूर–दूर तक समझ में न आए, ऐसा दूरदर्शी बजट लेकर आए हैं। बजट इसीलिए भी दूरदर्शी बनाया गया है ताकि सुदूर अपने फाइव स्टार होटलनुमा ऑफिस में बैठ के पूंजीवादी विशेषज्ञ, बजट के दूरदर्शी होने की लम्बी–लम्बी बकैती झाड़ सकें। ऐसा माना जाता है कि मध्यवर्ग बड़ा दूरदर्शी होता है(कम से कम खयाली पुलाव तो पकाता ही है)इसीलिए खास कर मध्यवर्ग के लिए दूरदर्शी बजट बनाया गया है ताकि वो मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख सके। बजट की दूरदर्शिता का इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि इस बजट में जिनको कुछ नहीं मिला है वो तो चुप हैं ही, लेकिन जिन्हें मिला है उनकी अभी तक समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर उनको मिला क्या है।  बजट का दूरदर्शी होना इसीलिए भी जरूरी है ताकि आम लोग अपनी प्रत्यक्ष समस्याओं जैसे गरीबी, महंगाई, टैक्स के नाम पर कटती जेब के बारे में न सोचें बल्कि ये सोचे की हजार साल ब...