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Showing posts from August, 2023

विनोद कुमार

हृदय सरल सानिध्य सरल और सरल स्वभाव है जिनका कभी भी व्याकुल न दिखते हर कार्य में दिखे सरलता ! वाद–विवाद से दूर हैं कोसो दिखती नहीं चपलता विषम परिस्थिति में भी जिनमे प्रेम का दीपक जलता ! चंदौली हो या अभनापुर प्रेम ही प्रेम है फलता मितव्ययी, उत्कृष्ट आचरण से व्यक्तिव निखरता सत्य चित्त आनंद में रमकर हास्य ’विनोद’ झलकता विनयशील उन ’विनोद जी’ को पथ पर मिले सफलता                ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

शरद यादव

शब्द तक ही रोष का प्राकट्य सीमित है जहां पर किंतु उर में प्रेम सिंचित और हृदय निष्पाप है  धर्म आडंबर के ऊपर  दृष्टि आलोचक के जैसी पूर्वाग्रह से है दूरी खुदपे नित विश्वास है कार्य के वाहक हैं हर कामों को करते चित्त से वो सूचना प्रौद्योगिकी में हर तरह से पास हैं। जो शशि की भांति चमके ’शरद’ ऋतु की पूर्णिमा में वो ’शरद’ उन्नति करें ये सार्थक की आस है                ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

सफलता का सूरज

शहर की सबसे पॉश कालोनी का गटर जाम हो जाना एक बड़ी घटना थी। और हो भी क्यों न.. गरीब की बस्ती में, हैजा अगर सौ पचास लोगो को निगल भी जाए, तो किसी का ध्यान नहीं जाता। लेकिन वो ऑफिसर कालोनी थी। जहां का गटर बरसात में जाम हो गया था। इससे पानी सड़क पर आ गया था। और ये एक बड़ी घटना थी। खैर.. उस गटर के अंदर घुस कर, उसमे जमे कचरे को साफ करने के लिए, जल्दी ही किसी मजदूर की जरूरत आन पड़ी थी। और ऐसे में बगल की गंदी बस्ती में रहने वाले नंदू को आनन–फानन में बुलाया गया। नंदू वहां मौके पर पहुंचकर और उस गटर को देख कर वहां खड़े नगर पालिका के कर्मचारी से बोला, "साहब ये तो पूरी तरह चोक हो गया है..इसके अंदर घुस कर सफाई करनी पड़ेगी ?" वो कर्मचारी झुंझलाहट में बोला, " हां, तो इसमें दिक्कत क्या है ?.. इसके अंदर जाओ और साफ करो। वैसे भी ऊपर से बहुत प्रेशर है।" नंदू थोड़ा झिझक कर बोला, " लेकिन साहब इस काम को करने का रुपिया कितना मिलेगा ?" नगर पालिका का कर्मचारी थोड़ा ऐंठ कर बोला, " तुमको बहुत मक्कारी सूझ रही है।500 रुपिया मिलेगा..जितना सबको मिलता है। अगर न करना हो तो बताओ किसी दूस...

निपुण भारत

स्वप्न एक ही हम सबका विद्यालय निपुण बनाना है उद्यमशील बने भारत इस स्वर्निम लक्ष्य को पाना है ! कलरव, किसलय, गिनतारा बिगबुक से सीख रहे बच्चे नया सत्र, नैसर्गिक शिक्षा नई विधा अपनाना है ! बालवटिका विद्यालय में बचपन खेल रहा जिसमे बच्चों का व्यक्तित्व खिल रहा विश्व पटल पर छाना है ! ड्रेस, पुस्तक, जूते–मोजे सब फ्री मिल रहे इसीलिए ताकि गरीब के बच्चों को विद्यालय तक पहुंचना है विषय जटिल लगते थे जो अब खेल–खेल में सीख रहे तकनीक नई, विज्ञान नया ’गतिविधि’ का ही ये जमाना है ! निपुण ब्लॉक, स्कूल निपुण और जिला निपुण जिस दिन होगा देश निपुण होगा और ये ही सबसे बड़ा खजाना है !                  ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

विविधता में एकता

भले विविधता हो कितनी, हम एक जैसे दिखते हैं कहीं हिमालय की श्रेणी ने सुंदर धरा को घेरा है कहीं मरुस्थल और मैदानों, का ही भूमि पे डेरा है मालाबार से कोरोमंडल, तक समुद्र का फेरा है अरावली से दक्कन तक की, दिखता नया सवेरा है किंतु हमारा हृदय एक सा, एक ही स्वर में कहते हैं भले विविधता हो कितनी हम एक ही जैसे दिखते हैं ! खान पान और परिधानों की, बेहद छटा निराली है उत्तर से दक्षिण तक भोजन की अपनी ही थाली है सोच विचार अलग हो लेकिन देश की नाव संभाली है अपने–अपने हिस्से की, सबने आहुति डाली है पूरे हिंदुस्तान को अपने साथ में लेकर चलते हैं भले विविधता हो कितनी हम एक ही जैसे दिखते हैं ! हिंदी, गुरुमुख, भोजपुरी, उड़िया बंगाली भाषा है द्रविड़ संस्कृति ने खुद को, हीरे की भांति तराशा है अलग–अलग मजहब हैं उनकी, सिर्फ एक परिभाषा है सत्य समर्पण हो उर में, हर धर्म की हमसे आशा है सब धर्मों का सार समेटे, हम कुटुंब से रहते हैं भले विविधता हो कितनी हम एक ही जैसे दिखते हैं ! जिस प्रकार सब नदियों को, इक दिन समुद्र में जाना है विविध भूमि को सिंचित करके, अंत एक हो जाना है उसी तरह सारे मतभेदों, को मिल दूर भगाना है स्वर...