भले विविधता हो कितनी, हम एक जैसे दिखते हैं कहीं हिमालय की श्रेणी ने सुंदर धरा को घेरा है कहीं मरुस्थल और मैदानों, का ही भूमि पे डेरा है मालाबार से कोरोमंडल, तक समुद्र का फेरा है अरावली से दक्कन तक की, दिखता नया सवेरा है किंतु हमारा हृदय एक सा, एक ही स्वर में कहते हैं भले विविधता हो कितनी हम एक ही जैसे दिखते हैं ! खान पान और परिधानों की, बेहद छटा निराली है उत्तर से दक्षिण तक भोजन की अपनी ही थाली है सोच विचार अलग हो लेकिन देश की नाव संभाली है अपने–अपने हिस्से की, सबने आहुति डाली है पूरे हिंदुस्तान को अपने साथ में लेकर चलते हैं भले विविधता हो कितनी हम एक ही जैसे दिखते हैं ! हिंदी, गुरुमुख, भोजपुरी, उड़िया बंगाली भाषा है द्रविड़ संस्कृति ने खुद को, हीरे की भांति तराशा है अलग–अलग मजहब हैं उनकी, सिर्फ एक परिभाषा है सत्य समर्पण हो उर में, हर धर्म की हमसे आशा है सब धर्मों का सार समेटे, हम कुटुंब से रहते हैं भले विविधता हो कितनी हम एक ही जैसे दिखते हैं ! जिस प्रकार सब नदियों को, इक दिन समुद्र में जाना है विविध भूमि को सिंचित करके, अंत एक हो जाना है उसी तरह सारे मतभेदों, को मिल दूर भगाना है स्वर...