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Showing posts from May, 2023

अब देश में सब कुछ है बंद

मुद्रा तो बस बदनाम है अब देश में सब कुछ है बंद ! जितने विरोध के थे प्रसंग कुचले सहस्त्र शब्दों के कंठ जिव्हा हुईं अगणित अपंग जनमत हुआ राजा से रंक जिसने भी एक आवाज की वो बैन है या फिर है तंग मुद्रा तो बस बदनाम है अब देश में सब कुछ है बंद ! मस्तिष्क में बैठा भुजंग वसुधा हुई जैसे बेरंग सुचिता में अब लग गई जंग सब मस्त हैं खाकर के भंग गरदन पे जब आरी चली कट के गिरी जैसे पतंग मुद्रा तो बस बदनाम है अब देश में सब कुछ है बंद !               ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

कठपुतली

चमकने की हवस से ग़र मिले फुर्सत, ज़रा देखो तराशे जा रहे हो या कि कटपुतली हो हाथो की ! जिसे दिलकश समझते हो, वो बातों का सिकंदर है जो बस बाते बनाए, क्या है कीमत उसके बातों की ! यूं आंखें बंद करके कर रहे सजदे, संभल जाओ ज़रा सोचो हकीकत क्या है इन सारे फसादों की ! जरूरी तो नहीं वो बोलता है जो, सभी सच हो तुम्हें लगने नहीं है दी भनक अपने इरादों की ! जो वादे कर रहे तुमसे, सुनहरा कल बनाएंगे कपट मतलबपरस्ती से बनी फ़ेहरिस्त वादों की ! सफेदी की लिए चमकार जो दिन में भटकते हैं घिनौनी है बहुत उनमें छुपी उन्माद, रातों की !                         ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

मास्टर साहब (भाग 3)

"रण बीच चौकड़ी भर–भर कर कर चेतक बन गया निराला था !"  "चेतक बन गया निराला था" इसका ये मतलब मत निकाल लीजिएगा की वो महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’ बन गया था। वो तो एक अद्भुद घोड़ा था। यहां इसका जिक्र करने का उद्देश्य बस इतना भर है की अब मास्टर भी रण बीच चौकड़ी भर–भर कर निराला हो गया है।(वो अलग बात है जिस हिसाब से उससे काम लिया जा रहा है, उसकी हालत घोड़े जैसी नहीं बल्कि खच्चर जैसी हो गई है।) लाल फीता साही ने पहले "निरीक्षण" कराया..फिर "परिवेक्षण" कराया..इस पर भी जब उसका मन नहीं भरा..तो अब वो मास्टरों से हाउस होल्ड "सर्वेक्षण" करवा रही है। और मास्टर भी जेठ की दुपहरी में सिर पर बस्ता रखे, "वीर तुम बढ़े चलो.. धीर तुम बढ़े चलो" वाले भाव के साथ घर–घर सर्वेक्षण करते घूम रहा है। यानी चेतक कविता की भाषा में कहें तो – "कौशल दिखलाया निरीक्षण में फंस गया भयानक परवेक्षण में निर्भीक गया सर्वेक्षण में  घर–घर भागा अन्वेषण में " हां.. हां ! मानते हैं यहां इस कविता में मैंने थोड़ा अतिशयोक्ति का प्रयोग कर दिया है। अभी तक शिक्षको का ...

मेरी दृष्टि से बुद्ध

हमेशा की तरह पहले ही स्पष्ट कर दूं कि बुद्ध व्यापक हैं और मेरी दृष्टि संकुचित है। लेकिन फिर भी मैं जितना उनको देख (समझ) पा रहा हूं, उनके बारे में बस उतना ही व्यक्त करूंगा। देखा जाए तो कितना आसान है बुद्ध को समझना..कितना सरल है उनके मार्ग का अनुकरण करना। लेकिन फिर भी हमारी अज्ञानता ने हमें कितना पंगु बना दिया है जो उनकी तरफ हम दो कदम नहीं बढ़ा पाते। कभी–कभी सोचता हूं सिद्धार्थ का बुद्ध हो जाना भी कितना स्वाभाविक था। आप कल्पना करिए, एक राजा के यहां के सुंदर सा बेटा पैदा होता है। पंडितो द्वारा भविष्यवाणी कर दी जाती है की ये बच्चा आगे चलकर राज्य के स्थान पर वैराग्य को चुनेगा।और फिर राजा अपने बच्चे को वैराग्य के मार्ग पर जाने से रोकने के लिए.. क्या–क्या जतन नहीं करता। ऐसा कहा जाता है कि सिद्धार्थ के रहने के लिए तीनों ऋतुओं ( जाड़ा गर्मी बरसात) को ध्यान में रखते हुए तीन महल बनवाए गए थे। जिनमे उनकी विलासता का पूरा ध्यान रखा गया था। बहुत ही सुंदर और जवान सेवक ही उनकी सेवा में लगाए गए थे। वो जब कभी भी नगर भ्रमण के लिए निकलते थे तो नगर वासियों को सख्त निर्देश थे की कोई बूढ़ा बीमार यहां तक कुरूप ...