इस्टीमेट
गांव की बढ़ती आबादी और गांव वालों की ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा करने की हवस के चलते, बेतरतीब कुकुरमुत्ता के जैसे घर बनते चले गए। ऐसे मे पानी के निकास को लेकर पड़ोसियों से लट्ठम लट्ठ होना आम बात थी। अधिकतर लोगों ने घर के आगे ही गड्ढा खोद लिया था। जिसमें घर का पानी भर जाता था। फिर घर की औरतें उस पानी को भर कर बाहर फेंकने पर मज़बूर थी।
अरे काहे कोसती हौ परधान का, 'तहदिल' अपनेन बिरादरी तौ आय!" ननकऊ गांजा की चिलम से मुह निकाल कर अपनी दुलहिन को डांट कर बोला।
पिछले चुनाव के समय जब सीट आरक्षित हुई थी तभी से ग्राम सभा की पिछड़ी आबादी, जो कि संख्या में बहुसंख्यक थी।सबने मिलकर प्रण कर लिया था कि," ई बार परधान अपनी बिरादरी केर बनावा जई!"
जब ये चर्चा चल रही थी तभी सम्बारी बीच में कूद कर बोला था, " बड़कएन का बहुत दिन परधान बनायौ, उनसे कुछ कहौ नाय मिलत है। अब ई तनका परधान बनाओ जीका चार गारी देव तहूं खीसै बनायक सुनि ले!"
और इस तरह गहन वार्तालाप के बाद सबने मिलकर 'तहदिल' को प्रधान बनाने का निश्चय किया। वैसे तो 'तहदिल' का असली नाम 'राम सहाय' था पर अवध प्रांत की एक खास बात है कि वो अपने आसपास के व्यक्तियों को उनके घर वालों द्वारा दिए गए नाम से नहीं पुकारते,बल्कि आगे चलकर उस व्यक्ति के गुण दोषों के आधार पर उसका नामकरण कर देते हैं।आगे चलकर यही नाम प्रचलन में आ जाता हैं।
जैसे राम सहाय स्वभाव से बहुत शालीन, और निश्चित होकर जिंदगी जीने वाले इंसान थे, जब पूरा गांव के लोग अपने खेतों की बुआई कर लेते थे। तब कहीं जाकर राम सहाय खेत की जुटाई के बारे में सोचते थे।अनाज भले ही खेत में सड़ जाए लेकिन राम सहाय खेत सबसे आखरी में काटते थे। इसीलिए गांव वाले उनको 'तहदिल' कहने लगे। ऐसे ही जो सोमवार को पैदा हुआ ,वो सम्बारी हो गया। जो हर काम जल्दी में करे वो 'आँधी' हो गया।
तहदिल प्रधान तो बन गए पर अपने निरंकारी स्वभाव और आलसी दिनचर्या के कारण गांव वालों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे। हां इतना जरूर था कि गांव वाले अब प्रधान को जी भरकर गालियां दे सकते थे।फिर भी प्रधानी तो करनी ही थी।ऐसे मे एक दिन 'दुलारे' जो कि उनका मित्र था उनको बुलाने आया।
"परधान ओ परधान! घर के अंदर परे का उखारत हौ!"
"अरे आओ आओ दुलारे, कहौ कइसे आना भवा!" तहदिल दुलारे को देख के बोले।
"हाल चाल छ्ड़ौ, जबसे परधान होइगौ, घरे मा परे रहत हौ,अरे बिलाक जाव, साहब लोगन से मिलौ, गांव मा कुछ काम धाम कराओ।"दुलारे ने अपने चिरपरिचित अंदाज में तहदिल को डांट के समझाया।
दुलारे की डांट का असर हुआ और इस तरह तहदिल दुलारे साथ ब्लॉक जा पहुचे।ब्लॉक में पंचायत सेक्रेट्री के ऑफिस का पता लगा कर दोनों लोग वहीँ पहुच गए।
"सिकरेटरी साहब नमस्कार!" तहदिल ने सेक्रेट्री को देख कर उनका अभिवादन किया।
सेक्रेट्री ने ध्यान से तहदिल को देखा फिर पहचान कर बोला, "आइए नए प्रधान जी।कहिये कैसे आना हुआ।"
"अरे सिकरेटरी साहब, ग्रामसभा के काम से आए हन। गांव मा कुछ खड़न्जा वड़न्जा और याक दुई नाली नरदहा बनवावा जाय, सब बैइठब मुस्किल करे हैं।" तहदिल ने एक साँस में ही वहाँ आने का कारण बता दिया।
"हाँ••हाँ आप की बात सही है प्रधान जी! काम कराना जरूरी है।तभी चार पैसे आप भी कमा सकते हैं।" सेक्रेट्री मुस्करा कर बोला। फिर कुछ सोच के आगे बोला, " आपको जो भी काम कराने हैं उसकी 'कार्ययोजना' तो बना ही ली होगी!"
"यू 'कार्य जोजना' का आय भइया" तहदिल ने ये सवाल सेक्रेट्री की जगह 'दुलारे से किया। मानो दुलारे गूगल हो।
तहदिल को अपनी तरफ देखते पाकर दुलारे झुंझला कर बोला,"हमार मू का ताकत हौ, सिकरेटरी साहब खुदै बतइहैं कार जोजना का होत है।"
जवाब में सेक्रेट्री साहब मुस्कराते हुए बोले,"प्रधान जी आप को जो भी काम साल भर में कराने हैं उसकी ऑनलाइन फीडिंग पहले ही करानी पड़ती है इसे ही कार्य योजना है।"
तहदिल को सेक्रेट्री द्वारा कार्ययोजना की दी गई परिभाषा की आखरी लाइन "इसे ही कार्ययोजना कहते हैं" बस यही समझ मे आया बाकी बातें उनके ऊपर से निकल गई।
"तौ साहिब यू कारजोजना कितना बनी हम जान नाय पाएन, आपै कुछ मदद करौ।"जिस तरह भूत बाधा से ग्रस्त कोई व्यक्ति तांत्रिक के सामने उससे निजात पाने के लिए गिड़गिड़ाता है वैसे ही तहदिल सेक्रेट्री से गिड़गिड़ा कर बोले।
"अरे प्रधान जी हम आपकी मदद के लिए ही तो हैं।आप को साल भर में जो भी काम कराने हैं वो नोट करा दीजिए, मैं ऑनलाइन फीड करा दूँगा। हां इस काम लिए बस पांच हजार रुपए लगेंगे।" सेक्रेट्री साहब तहदिल की समस्या का समाधान बताते हुए बोले।
"आंय ! पांच हजार रुपियौ लगिहैं। यू का बतावत हौ साहब, हम तौ सुना रहै जो परधान होइ जात है ऊ पइसा कमात है।हियां तौ हमरी जेब से पइसा लागि रहा है" तहदिल मुँह बनाकर सेक्रेट्री से बोले।
इसका जवाब सेक्रेट्री ने किसी मंझे हुए अर्थशास्त्री की तरह दिया, "आज पैसे लगाएंगे तभी तो कल कमाएंगे। जब तक कार्य योजना नहीं बनेगी तब तक कोई काम नहीं होगा, जब काम नहीं होगा तो पैसा भी नहीं आएगा।"
तहदिल को असमंजस में देख कर दुलारे ताव से बोला," का घिचिर पिचिर करत हौ, साहब सही तौ कहत हैं। निकारौ पांच हजार रुपिया और देव साहब का।"
साहब की मांग और दुलारे की डांट से मजबूर होकर तहदिल ने पांच हजार रुपया निकालने की प्रक्रिया शुरू की।इस प्रक्रिया का मतलब ये नहीं था कि तहदिल ने बैंक जाकर बिड्राल भरकर पैसा निकाला, यहां पर तहदिल द्वारा पैसा निकालने की प्रकिया का ये मतलब था कि तहदिल ने पहले जो धोती पहन रखी थी उसकी लांग खोली। फिर अलबट्टे में हाथ डालकर एक पोलीथीन निकाली जिसपर गेटिस चड़ी हुई थी।फिर उस पोलीथीन को खोलने के बाद उसके अंदर से एक और झिल्ली निकाली, फिर उसे खोलने के बाद अंदर से नोट निकाल कर कम से कम दस बार गिनकर सेक्रेट्री को पांच हजार रुपए पकड़ा दिए।
और इस तरह सेक्रेट्री द्वारा काम नोट कर लेने के बाद और अगले हफ्ते आने का आश्वासन पाकर दोनों लोग गांव वापस आ गए।
जैसे तैसे सात दिन बीतने के बाद तहदिल फिर से दुलारे सहित सेक्रेट्री से मिलने ब्लॉक पहुच गए। और जाते ही सवाल किया-
"साहब अब तौ कारजोजना बनि गै होई, अब खणन्जा लगावब सुरू किया जाय!"
"अरे प्रधान जी आप तो बहुत जल्दी में रहते हैं, कार्ययोजना तो बन गई है।लेकिन अब आप को जो काम कराना है उसका जे ई साहब से इस्टीमेट बनवाना पड़ेगा।" सेक्रेट्री ने उत्तर दिया।
"अब यू इस्टीमेट काय आय साहब" तहदिल ने उलझ कर पूछा।
जिसका सेक्रेट्री साहब ने उत्तर दिया,"प्रधान जी, आप को जो भी काम कराना है उसमें कितनी लागत आयेगी, कितने मजदूर लगेंगे कितना मटेरियल लगेगा। यही सब जोड़ घटाना को इस्टीमेट कहते हैं।"इसके लिए आप को जे ई साहब से मिलना पड़ेगा।"
और इस तरह सेक्रेट्री के समझाने के बाद तहदिल और दुलारे इस्टीमेट बनवाने की तलाश में जे ई साहब के ऑफिस जा पहुंचे।
जे ई साहब तो ठहरे अधिकारी इसलिए उन्होंने तहदिल से सीधे मुह बात नहीं की।इसकी जगह वहाँ काम कर रहे एक लड़के के पास तहदिल को भेज दिया।
लड़का- आप को किस काम का इस्टीमेट बनवाना है।
तहदिल - खङन्जा लगवावेक है , खेलावन के घर से छेदू के घर तक।
लड़का - ठीक है जे ई साहब देख लेंगे। पर जितने रुपए का इस्टीमेट बनेगा उसका तेरह पर्सेंट (13%) पहले ही जमा करना पड़ेगा।
तहदिल - आंय यू का कहत हौ भइया। 13% वो भी पहिले, हमसे पहिले जौन परधान जी रहय विय तौ कहत रहें कि बिलाक मा सात पर्सेन्ट का रेट चलत है। फिर यू त्यारह पर्सेन्ट कइसे गोइगा।
लड़का - आप भी क्या बात करते हैं प्रधान जी। सात पर्सेंट का रेट बहुत पुराना हो गया। जानते नहीं की इस समय कितनी सख्त सरकार है। अब जिला तक पैसा जाता है। ये पैसा पूरा हम लोग थोडे न रख लेंगे। सबको खुश करना पड़ता है। बहुत सख्त शासन है। रही बात एडवान्स की तो कभी घूस का पैसा भी उधार होता है। पूरे देश मे किसी भी काम के इस्टीमेट बनाने का पैसा एडवान्स में ही लिया जाता है।
खैर मरता क्या न करता, तहदिल ने दिल पर पत्थर रख कर और 13 पर्सेंट एडवांस देकर इस्टीमेट बनवा लिया। फिर इस तरह खड़न्जे का काम शुरू हुआ।अब चूँकि पैसा भी बचाना था इसलिए अव्वल की जगह दोमा ईट मंगाई गई।
जैसे तैसे खड़न्जे का काम पूरा हुआ फिर एक दिन सेक्रेट्री साहब तहदिल से मिलने आए।
प्रधान जी खड़न्जे का काम पूरा हो गया या नहीं ? सेक्रेट्री ने पूछा।
"पूरा तौ होइगा साहब।"तहदिल ने उत्तर दिया।
"तब ठीक है प्रधान जी। जिले से टीम आ रही है गांव का काम चेक करने।"सेक्रेट्री ने बम फोड़ा, जिसके कारण तहदिल के हाथ पैर फूल गए।
"अरे यू का बतावत हौ साहब, त्यारह पर्सेन्ट दिया तौ रहय फिर काहे टीम आय रही है।" तहदिल परेशान होकर बोले।
सेक्रेट्री तहदिल को समझाते हुए बोले,"ये अलग टीम है प्रधान जी। क्या किया जाए बहुत सख्त सरकार है इस समय।लेकिन परेशान न हो उनसे बात हो गई है।आप पंद्रह हजार रुपए की व्यवस्था रखिएगा। कोई दिक्कत नहीं होगी।
रुपए का नाम सुनते ही तहदिल के मुह में कलेजा आ गया।
"अत्ता तौ कमइबौ नाय किहा रहय, वारे परधानी••मरिगेन दादा !" तहदिल द्रवित होकर बोले।
तहदिल को परेशान देख कर सेक्रेट्री साहब ने समझाने की कोशिश की, "क्या किया जाय प्रधान जी बहुत की सख्त ••"
सेक्रेट्री की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि तहदिल फट पड़े।
" हां••हां जानित है बहुत सख्त सरकार है।यहे मारे जहां सात पर्सेन्ट रहय हुवां त्यारह पर्सेन्ट होइगा। जौन काम दस रुपिया मा होत रहै ऊ काम अब सौ रुपिया मा होत है। लानत है ई तनकी सख्त सरकार पर।"
सेक्रेट्री कुछ बोलते उससे पहले ही कोई तहदिल के दरवाजे पर आकर चिल्लाने लगा,"परधान ओ परधान! कत्ते दिन से तुम हमका टरकावत हौ।भला हमार नाली बनवइहौ कि ना बनवइहौ।यहे दिन मारे तुमका परधान बनाए रहन।"
तहदिल के कान में आवाज पड़ते ही सम्भल कर बोले," अरे नाही ननकऊ भइया गुस्साव न। तुमार नाली जरूर बनी। बस उका इस्टीमेट बनि जाय तब लगा लगाई।"
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
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