साहब की आलोचना सुनकर आजकल भक्तों की मनःस्थिति कैसी है - (1) दार्शनिक भक्त - ऐसे भक्त आजकल दार्शनिक हो गए हैं। " सब मोह माया है ..तुम क्या लेकर आए थे तुम क्या लेकर जाओगे। महामारी इसीलिए फैली है क्योंकि पाप भी बहुत बढ़ गया था। इसमे भला सत्ता सरकार क्या कर सकती है।" (2) अर्थशास्त्री भक्त - ऐसे भक्त देश की अर्थव्यवस्था का मूल्यांकन प्रस्तुत करके सरकार का बचाव करते हैं।"टेक्स आ नहीं रहा है व्यापार चौपट है तो ऐसे मे साहब क्या कर सकते हैं।" (3) कर्त्तव्य परायण भक्त- " सरकार की तरफ मुह उठाकर क्या देखते हैं सब। हर किसी को अपना कर्तव्य निभाने की जरूरत है। ये टाइम सरकार की गलतियां निकालने का नहीं है।" (4) इतिहासकार भक्त - "सब नेहरू की गलती है। 70 साल देश के लिए कुछ किया ही नहीं।" (5) गुस्साया हुआ भक्त - "हमसे बुराई मत करना..वर्ना मार हो जाएगा। साहब जो करते हैं अच्छा ही करते हैं।" (6) सुलझा भक्त - देखिए और कोई विकल्प भी तो नहीं है।सब चोर हैं।" (7) आशान्वित भक्त - "अरे इन सब बीमारियो से मत डरो। वो कहावत नहीं सुनी ," सब संवत लगे बीसा.....
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Showing posts from April, 2021
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एक बहुत छोटी सी लोक कथा..जो शायद सबने सुनी होगी, पर फिर भी आप को सुना रहा हूं।- एक बंदर और एक बकरी में बहुत दोस्ती थी। दोनों जंगल में रहते थे और दोनों साथ ही रहते थे। बंदर बहुत ही बातूनी और हाजिर जवाब था। बकरी को बंदर की यही अदा बहुत पसन्द थी। दोनों ने ये भी वादा किया था कि कभी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। पर एक बार की बात है, बंदर पेड़ पर बैठा फल खा रहा था और बकरी उसी पेड़ के नीचे घास चर रही थी। तभी वहां एक शेर आ गया और उसने बकरी पर हमला कर दिया। बकरी बहुत तेज चिल्लाई। ये देख कर बंदर जिस डाल पर बैठा था,उसे खूब तेजी से हिलाने लगा। उसके बाद बंदर उछल कर दूसरी डाल पर बैठ गया और फिर उसे भी हिलाने लगा। इस तरह बंदर एक-एक करके उस पेड़ की हर डाल को हिलाने लगा। उधर तब तक शेर बकरी को मार कर चट कर गया। और वहां से चला गया। ये पूरा घटनाक्रम उसी पेड़ पर बैठा एक कौवा देख रहा था। जब उससे नहीं रहा गया तो उसने बन्दर से पूछ ही लिया," क्यूँ बंदर भाई..वो बकरी तो तुम्हारी मित्र थी।फिर जब शेर उसको मार के खा रहा था तो तुमने कुछ किया क्यूँ नहीं!" बंदर बोला ," क्या बात करते हो कौवा भाई, तुमने ...
सत्ता की मोहनी
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वो सत्ताधारी मोहनी अवतार की तरह है और लोग फंस गए हैं उसके लटके झटके में ! उसके प्रपंच में उसके मायावी भाषणों में ! वो इसका फायदा उठाकर उद्योग पतियों को पिला रहा है अमृत ! और जनता को पिलाकर मदिरा और विष कर रहा है तृप्त ! नासमझ लोग नशे में कर रहे हैं अपना ही तर्पण ! अगर किसी ने देख लिया सच 'राहु' की तरह, काट दी जाती है उसकी गर्दन ! ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
इस्टीमेट
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"दहिजरउ परधान से कतनी बार कहा, नाली बनवाई देव मुला सुनिस नाय। अबकिल वाट मांगै अइहैं तौ द्वारेन से दुरियाय द्याबै।" ननकऊ की दुलहिन गुस्से मे बड़बड़ाती हुई घर के आंगन में खुदे गड्ढे से पानी निकाल कर बाहर फेंकने लगी। गांव की बढ़ती आबादी और गांव वालों की ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा करने की हवस के चलते, बेतरतीब कुकुरमुत्ता के जैसे घर बनते चले गए। ऐसे मे पानी के निकास को लेकर पड़ोसियों से लट्ठम लट्ठ होना आम बात थी। अधिकतर लोगों ने घर के आगे ही गड्ढा खोद लिया था। जिसमें घर का पानी भर जाता था। फिर घर की औरतें उस पानी को भर कर बाहर फेंकने पर मज़बूर थी। अरे काहे कोसती हौ परधान का, 'तहदिल' अपनेन बिरादरी तौ आय!" ननकऊ गांजा की चिलम से मुह निकाल कर अपनी दुलहिन को डांट कर बोला। पिछले चुनाव के समय जब सीट आरक्षित हुई थी तभी से ग्राम सभा की पिछड़ी आबादी, जो कि संख्या में बहुसंख्यक थी।सबने मिलकर प्रण कर लिया था कि," ई बार परधान अपनी बिरादरी केर बनावा जई!" जब ये चर्चा चल रही थी तभी सम्बारी बीच में कूद कर बोला था, " बड़कएन का बहुत दिन परधान बनायौ, उनसे कुछ कहौ नाय मिल...