क्या कहने !

कुछ लोकोत्तियां एवं उनके वाक्य प्रयोग-

 1 उड़ता तीर लेना - जब दिसम्बर से ही विश्व में कोरोना वायरस की सुगबुगाहट शुरु हो गई थी तब देश के ये साले कैपेटिलिस्ट मार्च के महीने तक उड़ता तीर लेने विदेश क्यूँ घूमने जा रहे थे!
2 सांप निकलने के बाद लाठी पीटना -  कोरोना वायरस लेके जब ये लीचड़ कैपेटिलिस्ट देश में वापस आ रहे थे तब तो साहब ने उनकी एन्ट्री को पूरी तरह बैन नहीं किया और जब वायरस देश में घुस आया तो देश को लॉकअप में डाल के थाली बजाने को कह रहे हैं। ये तो वही बात हुई की सांप निकल गया और बाद में लाठी पीट रहे हैं!
3 खेत खाए गदहा मारा जाए जुलाहा- अब जब ये लीचड़ कैपेटिलिस्ट विदेशो से ये महामारी देश में ले आए हैं।तो ऐसे मे बिचारा दो वक्त की रोती के लिये ज़ीद्दोज़हद करने वाला गरीब भी खतरे में पड़ गया है। ये तो वही बात हुई की खेत खाए गदहा और मारा जाए जुलाहा !
4 मरता क्या ना करता - ये शहर में महीने भर का राशन भरके बैठे लोग जो थाली बजा रहे हैं उनको शायद पता नहीं गांव का बिचारा गरीब घर में नहीं बैठ सकता क्यकि खेत में फसल पक चुकी है। उसको फसल भी काटनी है।उसे अपने घर में बंधे जानवरों के लिये बाहर से चारा भी लाना है। अगली फसल की बुआई के लिये खेत भी तैयार करना है।बिचारा मरता क्या ना करता!
5 घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने- ऐसे में जब देश की स्वास्थ संबंधी सेवायें एकदम निम्न स्तर की हैं तो ये दावा करना की सबका इलाज़ सम्भव है।ये तो वही बात हुई की घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने।
6 फूहड़ चली सब घर हाला - देश में जबसे कोरोना महामारी फैली है तबसे कुछ जाहिल फूहड़ बाबा और मौलवी इस महामारी के बेवकूफ़ी भरे इलाज़ बताये जा रहे हैं। क्या कहें ..फूहड़ चली सब घर हाला !
7 चित भी मेरी पट भी मेरी अंटा मेरे बाप का- इस विपदा के समय कुछ हरामखोर व्यापारी जमाखोरी करके सामन दस गुना कीमत पर बेच रहे हैं। ऐसे मतलबपरस्त लोगों का वही हाल है की चित भी मेरी पट भी मेरी अंटा मेरे बाप का!
8 कुत्ता भी दुम हिला के बैठता है- वो लोग जो ऐसी महामारी में भी गन्दगी फैला रहे हैं उनसे से अच्छे कुत्ते हैं हो जहाँ भी बैठते हैं, दुम हिलाकर बैठते हैं !
9 जैसे उदई वैसे भान,न इनके पूंछ ना उनके कान- जैसी इस देश की नासमझ जनता है वैसे ही यहाँ के नेता हैं।सही ही कहा गया है 'जैसे उदई वैसे भान, ना इनके पूँछ ना उनके कान!'
10 होइहै वही जो राम रचि राखा- कितना भी हाथ साबुन से धुलो कितना भी मास्क लगाओ पर होइहै वही जो राम रचि राखा!

                  ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

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