Posts

Showing posts from March, 2018

दुनियांदारी

दुनियां, क्या हो गया है तुमको ! ख़ुद में ही बस मगन.. ख़ुद की ही बस लगन.. ख़ुद के लिए जतन.. ख़ुद किया पतन.. दुनियां, क्या मिल गया है तुमको ! अपनी ही बस फ़िकर.. अपनो से बेख़बर.. अपना ही बस सफर.. ...

एक वार्तालाप

सरकार- "यार ये पेंशनविहीन कर्मचारी अपनी पेंशनबहाली का मुद्दा लेकर बहुतै कुलबुला करे हैं।" चुनाव विश्लेषक- "अरे काहे परेशान होते हैं नेताजी ! ई लोग कुच्छौ नहीं कर पाएंगे।" सर...

ऐसा देश है मेरा भाग -२

हम भाारतीयों का सोचने में कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।हमारी कल्पनाशीलता का कोई कितना भी मज़ाक क्यों न उड़ाए पर ये सबको मानना ही पड़ेगा कि हम भारतीय दुनियां में सबसे ज्यादा कल्पनाशील हैं। सोचने वाली बात ये है कि हम कितना सोचते हैंं?हमारी कल्पनाशक्ति कितनी है? क्योंकि ये कल्पनाशीलता ही है जो विज्ञान का आधार है। विज्ञान का कोई भी सिद्धांत अपने आप नहीं बन जाता है। किसी भी सिद्धांत के बनने से पहले एक हाइपोथिसिस(परिकल्पना) होती है।जिसके आधार पर आगे चलकर उस सिद्धांत का निर्माण होता है। जब कोई कल्पना ही नहीं करेगा तो कोई अविष्कार कैसे करेगा? भारत के धार्मिकग्रन्थ, पुराण,उपनिषद सब कल्पना से भरे पड़े हैं। और अगर कोई मेरी माने तो यही कल्पनाशीलता ही हमारी सबसे बड़ी विशेषता और पूंजी है।कुछ उदाहरणों के साथ बात को समझते हैं- दुनियां में सबसे पहले शल्य चिकित्सा की परिकल्पना भारतीय ग्रन्थों में मिलती है। जहां शिव ने बालक गणेश की शल्य चिकित्सा करके हाथी का सिर लगा दिया।ये अपने आप में एक अनोखी परिकल्पना थी। और फिर आज से दो हजार वर्ष पहले 'सुश्श्रुत' नामक भारतीय विद्वान ने  प्रमाणित तौर पर पहली...

ऐसा देश है मेरा !

कोई माने या न माने..मैं एकदम अपने देश पर गया हूँ। जैसा स्वभाव मेरे देश का है वैसा ही स्वभाव मेरा है।मुझमें और मेरे देश में जो सबसे बड़ी समानता है वो ये है कि हम दोनो हमेशा ग़लत ट...