अंजाम जो बदल दे
वो आगाज़ तुम बनो...
नफ़रत को जो मिटा दे
ऐसी गाज़ तुम बनो....
जो रूह में उतर के
अंधेरे को चीर दे
बजती है जो ख़शी में
ऐसी साज़ तुम बनो...

संकीर्णता से मुक्त हो
गगन में तुम उड़ो...
 प्यार की पुकार पे
जतन से तुम जुड़ो...
लोगो ने ज़हर बो के
है बंजर बना दिया
बेजान इस ज़मीन से
चमन में तुम मुड़ो...

            --दीपक शर्मा 'सार्थक'

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