तो होठों को सीं लेता हूँ... !

जब परेशानी इतनी बढ़ जाए
कि फिर वो परेशान न करे
जब परख इतनी बढ जाए कि
कुछ भी हैरान न करे
तो होठों को सीं लेता हूँ.... !

जब दर्द इतना बढ़ जाए कि
दवाई भी काम न करे
जब मेहनत इतनी पड़ जाए कि
कोई आराम न करे
तो होठों को सीं लेता हूँ... !

जब दूरी इतनी बढ़ जाए कि
कोई इंतज़ार न करे
जब नफ़रत इतनी बढ़ जाए कि
कोई प्यार न करे
तो होठों को सीं लेता हूँ... !

जब ग़ुस्सा इतना बढ़ जाए कि
कोई इज़हार न करे
उलझन इतनी बढ जाए कि
कोई इकरार न करे
तो होठों को सीं लेता हूँ... !

जब दहशत इतनी भर जाए कि
कोई मज़ाल न करे
जब गुलामी इतनी बढ़ जाए कि
कोई सवाल न करे
तो होठों को सीं लेता हूँ... !

      -- दीपक शर्मा 'सार्थक'




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