कुछ कह लूँ...

इससे पहले की ख़यालात दब जाएं
इससे पहले की सवालात दब जाएं
उल्टी धारा में बह लूँ
कुछ कह लूँ....

इससे पहले की आवाज़ घुट जाए
मुह से निकले अल्फाज़ लुट जाए
हर इल्जाम सह लूँ
कुछ कह लूँ....

इससे पहले की सांस थम जाए
नसों में बहता लहू जम जाए
टूटे ख्वाब सा ढ़ह लूँ
कुछ कह लूँ....

इससे पहले कि लोग पीछे पड़ जाएं
पाबंदियां लगाने पर अड़ जाएं
अपनी धुन में रह लूँ
कुछ कह लूँ....

             -- दीपक शर्मा 'सार्थक'

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