बेमकसद सा


बेमकसद सा
बेमतलब सा
प्यार है मेरा...
फूलों के खिलने सा
अपनों के मिलने सा
चाहत में मिटने सा
अहसास है मेरा...
सरहदों पर अमन सा
रेगिस्तान में चमन सा
गै़र मुल्क में वतन सा
इन्तजा़र है मेरा...
बच्चे की मुस्कुराहट सा
ताजमहल की बनावट सा
बसंत आने की आहट सा
ऐतबार है मेरा...
मोहोब्बत मिलने पर राहत सा
कोई प्यारी कहावत सा
प्यार में डूबी आयत सा
तलबगार हूं तेरा...
-- दीपक शर्मा 'सार्थक'

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