तुम शायर हो..!
कभी हँसते हो
कभी रोते हो
कभी उलझे हो
कभी सुलझे हो
तुम शायर हो....या पागल हो..!!
कितना गढ़ते हो
कितना रचते हो
केवल शब्दों में
ही..बसते हो
अपनी हांड़ी में....पकते चावल हो..!!
ये जताते हो
वो जनाते हो
ख़ुद की बातें ही
बस बताते हो
खंजर छूरी से.....तुम ही घायल हो...!!
ये समझते हो
एक तुम ही हो
ये दिखाते हो
'प्रेम'... तुमही हो
अपनी बातों के....लगते क़ायल हो..!!
या तो जलते हो
या जलाते हो
या तो मिटते हो
या मिटाते हो
जलते 'दीपक' के.....बनते काजल हो..!!
कहाँ जाना है
कहाँ आना है
किससे मिलना है
किसको पाना है
ऐसे प्रश्नों से.....बजती पायल हो..!!
ये तो अच्छा है
इल्म तुमको है
ये भी ज़ाहिर है
प्यार तुमको है
धूप में सर पे.....माँ का आँचल हो..!!
--दीपक शर्मा 'सार्थक'
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