कमर्शल लगते हो..

बहुत कमर्शल लगते हो..
ये तुम्हारा शेयर मार्केट वाला चहेरा
सेंसेक्स सा बदन
बजट सी मुस्कुराहट
घायल कर जाती है...
वो म्युचुअल फंड वाला रिश्ता
जिसे तुमने तोड़ दिया
चुभ जाता है कभी-कभी
पर क्या करें 
तेरी ग्लोबल अदाएं
दिल की धड़कनों को
इनफ्लेशन सा बढ़ा देती हैं...
ये प्राॅफिट-लाॅस वाली अांखे
जो मोहब्बत को नफा-नुकसान
से तौलती हैं
ये एक्सपोर्ट इम्पोर्ट वाला दिल
जो बदलता रहता है
एक जगह से दूसरी जगह..
पर सोचने वाली बात ये है कि 
इतना हिसाब-किताब कैसे रख लेते हो ?
हर वक्त जैसे बाज़ार में खड़े हो
पर देखना..
कहीं बाजारू न हो जाना
बहुत कमर्शल लगते हो...
                         --दीपक शर्मा ' सार्थक'

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