अहंकार और मूर्खता

आज आप को दो कहानी सुनाता हूं। परेशान न हों,कहानी बहुत छोटी–छोटी सी हैं। इन कहानियों का चुनाव परिणामों से कोई लेना देना नहीं हैं ( हालाकि ये झूठ भी हो सकता है) । इसीलिए बिना समय बरबाद किए कहानी शुरू करते हैं।
पहली कहानी –
ये बात द्वापर युग की है। बाणासुर नाम का शासक, भगवान शिव का आशीर्वाद पाकर बहुत ही ताकतवर और मतांध हो गया था। भगवान शिव के आशीर्वाद से उसके सहस्त्र ( हजार) हाथ हो गए थे। इसका उसे बहुत ही ज्यादा घमंड था।
आगे चलकर उसका भगवान कृष्ण से युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान ने उसके 996 हाथ काट डाले। बाणासुर की ये दशा देख कर भगवान शिव युद्ध के बीच में आ गए और कृष्ण को रोक दिया। भगवान शिव में कृष्ण से बाणासुर का ऐसा हाल करने का कारण पूछा।
कृष्ण ने बताया, इसे अपने सहस्त्र हाथो का बहुत ज्यादा घमंड हो गया था। इसे लगता था की इस धरा में इसे कोई हराने वाला पैदा नहीं। इसीलिए मैंने इसका ये हाल किया। क्युकी मनुष्य का अहंकार ही मेरा भोजन है। मैं अहंकारियो के मद का पान करता हूं। इसके चार हाथ इसलिए छोड़ दिया है क्युकी अब ये मेरे बराबर हो गया है यानी मैं भी चतुर्भज और ये भी चार हाथो वाला हो गया। अहंकार किसी का भी हो,  अगर कोई अपने आप को सर्वे सर्वा समझने लगे, अगर उसे घमंड हो जाए की वो अजेय है उसे कोई नहीं हरा सकता है तो मैं उसके इस अहंकार को नष्ट जरूर करता हूं।
पहली कहानी यहीं पर खत्म हुई। इस कहानी भाव तो आप समझ ही गए होंगे।

अब आते हैं दूसरी कहानी पर जो पहली कहानी से भी छोटी है। इस कहानी में मुख्य पात्र हैं संता और बंता।
एक बार की बात है संता और बंता जंगल में घूमने गए। वहां पहुंचे ही थे की उनको कुछ लोगो ने घेर लिया। उसमे से एक आदमी की बंता से पर्सनल खुन्नस थी इसीलिए उसने संता के चारो तरफ एक गोल घेरा बना दिया और संता से कहा की जब तक मैं बंता को मारूंगा तब तक तुम इस गोले के बाहर पैर भी मत निकालना वर्ना तुम्हारा भी हाल बुरा कर दूंगा।
इसके बाद उस आदमी ने बंता को बहुत मारा और वहां से चला गया।उनके जाने के बाद बंता कराहते हुए संता के पास आया जो दूर खड़ा मुस्कुरा रहा था।
बंता उसे उसे यूं मुस्कुराता देख कर गुस्से से बोला, "क्यों बे संता ! वो लोग मुझे मार रहे थे और तुम कुछ कहने के बजाय बस हंस रहे हो ?
संता बोला, " अरे यार मैंने उस आदमी से बदला ले लिया। जब वो तुम्हे मार रहे था, तब मैने चुपके से अपने पैर गोले के बाहर निकाल लिया था, और उसे इसका पता तक नहीं चला।" ये बोल कर संता जोर–जोर से हंसने लगा।
मॉरल ऑफ द स्टोरी ये है की  वो मूर्ख संता बस उस आदमी द्वारा खींचे गोले से बाहर पैर निकालने भर से ही इतना खुश हो गया जैसे वो जीत गया हो। या उसने मार खाने का बदला ले लिया हो ! कुछ यही हाल एक गठबंधन वाली पार्टी के नेताओं का है।  बस वो संता की तरह गोले से बाहर पैर निकालने भर से खुश है या कह लें, दूसरी पार्टी के अकेले बहुमत पाने से रोकने भर से ही खुश हैं।
धन्यवाद कहानी खतम ...पैसा हजम !

                             @ सार्थक 

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