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Showing posts from June, 2024

पंचायत सीजन 3 रिव्यू

पंचायत सीजन ३ को रिव्यू करने से पहले उसके एक सीन का जिक्र करना चाहूंगा ! दृश्य कुछ ऐसा है कि पुराने सचिव जी के ट्रांसफर के बाद नया सचिव फुलेरा ग्राम पंचायत में ज्वाइन करने आता है। प्रहलाद जिसे प्यार से विकास प्रहलाद चा बोलता है, वो उस नए सचिव को अपने विशेष फनी अंदाज में भगा देते हैं। इस घटना के बाद बलिया की डीएम प्रधान मंजू देवी एवम् प्रह्लाद को नाराज होकर बुलाती हैं। बहुत सी वार्तालाप के बाद मंजू देवी ऑफिस से उठकर जा रहे प्रह्लाद को टोक कर बोलती हैं, "प्रह्लाद ! सचिव जी(जिनको रोकने के लिए प्रह्लाद ने नए सचिव को धमकाया था) तो वैसे भी चार पांच महीने में जाने ही वाले थे!" प्रह्लाद (जिसका बेटा हाल ही में शहीद हुआ है) मूड कर मंजू देवी को देख कर बोलता है, "तो चार पांच महीने बाद चले जाएं भाभी ! समय से पहले कोई नहीं जाएगा..कोई नहीं मतलब कोई नहीं !" मंजू देवी और डीएम मोहोदया उसका द्रवित चेहरा देखती रह जाती हैं बैक ग्राउंड में हल्की सी करुणा से भरी बांसुरी का साउंड आता है। और यही ये दृश्य खत्म हो जाता है। इस एक ही लाइन में प्रह्लाद अपने अंदर की पीड़ा, और अथाह शोक में डूबी अप...

अहंकार और मूर्खता

आज आप को दो कहानी सुनाता हूं। परेशान न हों,कहानी बहुत छोटी–छोटी सी हैं। इन कहानियों का चुनाव परिणामों से कोई लेना देना नहीं हैं ( हालाकि ये झूठ भी हो सकता है) । इसीलिए बिना समय बरबाद किए कहानी शुरू करते हैं। पहली कहानी – ये बात द्वापर युग की है। बाणासुर नाम का शासक, भगवान शिव का आशीर्वाद पाकर बहुत ही ताकतवर और मतांध हो गया था। भगवान शिव के आशीर्वाद से उसके सहस्त्र ( हजार) हाथ हो गए थे। इसका उसे बहुत ही ज्यादा घमंड था। आगे चलकर उसका भगवान कृष्ण से युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान ने उसके 996 हाथ काट डाले। बाणासुर की ये दशा देख कर भगवान शिव युद्ध के बीच में आ गए और कृष्ण को रोक दिया। भगवान शिव में कृष्ण से बाणासुर का ऐसा हाल करने का कारण पूछा। कृष्ण ने बताया, इसे अपने सहस्त्र हाथो का बहुत ज्यादा घमंड हो गया था। इसे लगता था की इस धरा में इसे कोई हराने वाला पैदा नहीं। इसीलिए मैंने इसका ये हाल किया। क्युकी मनुष्य का अहंकार ही मेरा भोजन है। मैं अहंकारियो के मद का पान करता हूं। इसके चार हाथ इसलिए छोड़ दिया है क्युकी अब ये मेरे बराबर हो गया है यानी मैं भी चतुर्भज और ये भी चार हाथो वाला हो गया। अह...

आखिरी सलाम हो जाए

बुझी-बुझी सी है शब, एहतराम हो जाए जलाओ दिल हि कि रौशन ये शाम हो जाए ! हुए बरबाद इस क़दर की मिट गई हस्ती इसी ख़ुशी में एक-एक जाम हो जाए ! है हर तरफ मेरी नाकामियो भरे चर्चे इसी बहाने सही कुछ तो नाम हो जाए ! बिछड़ रहे हो जाने कब मिलो फिरसे चलो कहीं तो आखरी सलाम हो जाए ! जो राज़ दफ्न है खोलो न किसी के आगे कहीं न प्यार के किस्से कलाम हो जाए ! करो तबाह किसी को न हद से ज्यादा यूँ कि उसको ज़िन्दगी जीना हराम हो जाए ! जरा देखो तो सियासत का यही मकसद है जो भी आज़ाद है कैसे ग़ुलाम हो जाए !              © दीपक शर्मा 'सार्थक'