Posts

Showing posts from July, 2021

अति सर्वत्र वर्जयेत्

साक्ष्य तो नहीं है पर सुना है जब दुर्घटनावश कालिदास की जुबान देवी के मंदिर में कट कर गिर गई तो देवी ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। कालिदास ने विद्योत्मा को माँगा लेकिन जुबान कटी होने के कारण वो विद्या ही बोल पाए। इस तरह देवी उन्हें विद्वान होने का वरदान देकर चली गई। पर कहानी यही खत्म नहीं हुई। कहा जाता है कि कालिदास को इतनी विद्या मिल गई कि वो जो कुछ भी लिखते उससे संतुष्ट नहीं होते। उन्हें अपने लिखे में ही कमियां नजर आने लगती। उनकी मानसिक हालत इतनी खराब हो गई कि वो अपने ज्ञान से ही पागल होने लगे। ये कहानी मुझे मेरी दादी सुनाया करती थी। उन्हीं के अनुसार जब कालिदास बहुत परेशान हो गए तो उनको किसी पंडित ने लगातार "कुंदरू" की सब्जी खाने की सलाह दी।पंडित ने कालिदास को बताया कि कुंदरू की सब्जी खाने से बुद्धि कुंद यानी कम हो जाती है। इस तरह कालिदास ने अपनी बुद्धि को कुंदरू खाकर कंट्रोल किया। खैर ये कहानी सही है या गलत मुझे नहीं पता पर इस कहानी का मेरे बाल मन के ऊपर इतना फर्क़ जरूर पड़ा कि मैंने बचपन में कुंदरू खाना बंद कर दिया था। मैं नहीं चाहता था कि जो थोड़ी बहुत बुद्धि है वो...

आधुनिक चीरहरण

कुरु सभा में चीरहरण के समय  अवसरवादी चुप थे क्योंकि  दुर्योधन उनकी पार्टी का नेता था ! बड़के तीसमार खां भी चुप रहे क्योंकि  दुर्योधन उनकी आय से अधिक  संपत्ति की जांच करवा देता ! केंद्र की सत्ता में बैठे  दुर्योधन के बाप ने भी आखें बंद कर रखी थी क्योंकि  दुर्योधन ही विधानसभा चुनाव जीता सकता था ! बुद्धिजीवी भी चुप ही रहे क्योंकि  दुर्योधन जैसे दुष्ट के मुह लगके  वो अपनी इज्जत नहीं कम करना चाहते थे ! विपक्ष भी थोड़ा बहुत सोशल मीडिया  पर उछल कूद करके शांत हो गया क्योंकि  विपक्ष कायर था और दुर्योधन से डरता था ! बची वहाँ की जनता  तो वो भी चुप रही क्योंकि  कोऊ नृप होय उन्हे का हानी !                         ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'                    ©️

तंत्र के तांत्रिक

लोकतंत्र से 'लोग' गायब  जनतंत्र से 'जन' गायब  प्रजातंत्र से 'प्रजा' गायब  अब बचा है केवल 'तंत्र' ! और बचे हैं उस 'तंत्र' को  वेश्या की तरह अपनी उंगलियों पर  नचाने वाले 'तांत्रिक' ! इस तंत्र की नाली में  कीड़े के जैसे बजबजाते ये तांत्रिक  फैल गए हैं इसकी नस-नस में  और जोंक के जैसे चूस रहे हैं  इस तंत्र का खून ! और इस भीड़तंत्र की भीड़ ने  लिया हैं आखें मूँद !            ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'