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Showing posts from January, 2021

नेता और किसान

वो सियासत के सीवर में  बह रहे कीचड़ के जैसा  लाश के ऊपर कफन को  बेच दे, लीचड़ है ऐसा  और तुम हाथों में 'हल'  लेकर के लड़ने आ गए ! वो सियासी दांव पेचों में सधे 'शकुनी' के जैसा  एकता को तोड़ने में  है कुशल छेनी के जैसा  और तुम संयुक्त होकर  भिड़ने उससे आ गए ! भेष साधू का धरे  वो छद्म विद्या में है माहिर  स्वांग आडम्बर कुटिल  चालों से छलने में है माहिर  और तुम उसके शहर में  धरना देने आ गए ! किंतु अब जब आ गए तो  दंभ उसका तोड़ना  झुक न जाये जब तलक  पीछा न उसका छोड़ना  अब न हिम्मत हारना  अब आ गए तो आ गए !        ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

यदि गाय तुम्हारी माता है

गाय को लेकर भारतीय जनमानस में एक विशेष प्रकार की संवेदना है, ये जग जाहिर है। बचपन से ही हमें समझाया गया है की गाय का स्थान माता के समान है। परीक्षा के समय हम बच्चे आपस में मज़ाक करते हुए कहते थे की यदि पेपर कठिन आया तो कॉपी में लिख देंगे - गाय हमारी माता है.. हमको कुछ नहीं आता है वो बात अलग है की बाद में ये मज़ाक भी प्रचलन में आया की इग्जामनर भी कॉपी पर लिख देगा- सांड तुम्हारा बाप है नम्बर देना पाप है कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है की भारतीय संस्कृति में पैदा होने से लेकर मरने के बाद बैतरणी पार करा कर बैकुंठ पहुचाने तक गाय की महत्वपूर्ण भुमिका मानी गई है। किन्तु वर्तमान परिद्रश्य में गाय का महत्व मात्र सांस्कृतिक क्रिया कलापो तक सीमित नहीं रह गया है। अब गाय एक राजनीतिक जीव भी है। गाय पर राजनीति करके नेता लोकसभा पहुच रहें हैं।  परंतु गाय का सांस्कृतिक इतिहास एवं राजनीतिक महत्त्व के बीच उसका आर्थिक इतिहास पीछे छुट सा गया है। यदि आर्थिक नजरिये से देखा जाए तो भारत में जबसे आर्य लोग आए, गाय उनके जीवन की सभी क्रिया-कलापों में शामिल हो गई। किन्तु गाय का आर्थिक महत्व आर्यों को धीरे-धीरे समझ म...

आभासी स्कूल

"इतनी कम संख्या है आप के स्कूल में बच्चो की!", साहब   बड़ी बड़ी आंखें काढ के बोले तो मास्टर साहब सहम गये। फिर हैरतंगेज़ होकर दोबारा साहब की आंखों को देख कर मन ही मन सोचने लगे की आखिर कौन से गुरुत्वीय बल के कारण इतनी बड़ी आंखे फैलाने के बाद भी साहब के बुल्ले टपक कर बाहर नहीं गिरे। "अब क्या मुंह ताक रहे हैं? सरकार आप को हराम का पैसा देती है! जब विद्यालय में बच्चे ही नहीं है तो क्या दिवारों को पढ़ायेंगे !" साहब पुन: सिंह पर सवार महिषासुर मर्दिनी वाली मुद्रा में मास्टर साहब पर चढ़ बैठे। मास्टर साहब के अंदर जितनी शालीनता बची थी उसे एक साथ इकट्ठा करके बोले, "सर ! हम प्रयास कर रहे हैं रोज आस पास के गांवो में बच्चो को बुलाने जाते हैं लेकिन.." "क्या लेकिन-वेकिन लगा रखा है..हमको पता है कितना प्रयास कर रहे हैं आप लोग..सरकार ने साफ साफ कह दिया है कि कोई भी 6 से 14 वर्ष का बच्चा बिना पढ़े न रह जाए,उसके लिए चाहे जो कुछ करना पड़े।" साहब गुस्से में अपने दाँतों को ही सुपारी समझ कर, चबाते हुए बोले। मास्टर साहब बोलना तो बहुत कुछ चाहते थे लेकिन फिर भी गरदन नीची करके केवल ...
  इधर एक दो सालों से एक नया  ट्रेंड चल रहा है।कुछ लोग 25 दिसम्बर यानी क्रिसमस वाले दिन को 'तुलसी पूजन' दिवस के रूप मे मनाने की बात करने लगे हैं। लेकिन पता नहीं क्यों, ऐसे लोगों की हरकतें मेरे गले नहीं उतरती। उसका कारण ये है की अँग्रेजी कैलेंडर के अनुसार  25 दिसंबर को क्रिसमस डे मनाया जाता है। जबकि सभी भारतीय त्योहार अँग्रेजी कैलेंडर की बजाय भारतीय संवत  की तिथियों के अनुसार मनाए जाते हैं। फिर 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस कैसे हो सकता है? और इससे भी ज्यादा अचरज की बात ये है कि यही लोग    'एक जनवरी' को अँग्रेजी कैलेंडर का नववर्ष बताकर उसे मनाने से मना करते हैं। और उसकी जगह भारतीय तिथि के अनुसार नववर्ष मनाने की सलाह देने लगते हैं। भारतीय कैलेंडर की स्थिति देश में क्या है, ये किसी से नहीं छुपा है। भारतीय तिथियों की तो बात छोड़ो, जिन लोगों की जड़े गांव से नहीं जुड़ी हैं यदि उनसे हिन्दी के बारह महीने के नाम पूछ लो तो वो भी नहीं पता होगा। भले ही मेरी बात तीखी लगे पर सत्य यही है की भारतीयों को क्रिसमस और नया साल कब आता है, ये किसी से पूछना नहीं पड़ता। इनकी...