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Showing posts from August, 2018
कभी गौर किया है ! कुछ चहरे चीख चीख के बयां करते हैॆ अंदर का खालीपन कभी ध्यान दिया है ! कुछ आंखों में साफ झलकता है अंदर का वीरानापन कभी महसूस किया है ! कुछ लोगो की हंसी ज़ाहिर कर द...

पूर्णिमा

अंधेरे में प्रकाश पुंज की तरह है पूर्णिमा मिटा दे नफ़रतो को प्रेम की धरा है पूर्णिमा जडत्व को हटाके 'चेतना' का जो करे उदय सरल हृदय मृदुल वचन सी निर्झरा है पूर्णिमा तिमिर में ...
ख़ुदी में डूबा सा बेजान है शहर पूरा कोई सुकून न उम्मीद हम रहें कैसे उमर ग़ुजर गई पूरी यूंही ख़यालो में जो बात दिल में है लब्ज़ो में हम कहें कैसे है वो नदी मेरा वजूद है तिनके ज...