दो-चार झूठ
चार-पांच धोखे
सात-आठ ज़ख्म
और बन गया वजूद मेरा !
ढेले भर अकल
दो टके समझ
रत्ती भर सबर
और बस गया शहर मेरा !
थोड़ी सी बेचैनी
हल्की सी चुभन
ज़रा सी तड़प
और कट गया सफर मेरा !

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