कड़ी निंदा..सड़ी निंदा
हुई फिर से कड़ी निंदा
वही सूखी सड़ी निंदा
बिना सिर पैर के करते हैं
'साहब' हर घड़ी निंदा
वो "छप्पन इंच" के सीने
से ज़्यादा है बड़ी निंदा
उखड़ आई ज़मीने ख़ाक से
फिर से गड़ी निंदा
सियासत के शहर में
हर तरफ फैली पड़ी निंदा
कोई करता गरम निंदा
कोई करता नरम निंदा
नहीं आती ज़रा सा भी
उन्हें करते शरम निंदा
किसी का है करम निंदा
किसी का है हरम निंदा
अभी सरकार का लगता है
जैसे है धरम निंदा
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
Outstanding poetry deepak sir
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