तन्हा
शहर में भीड़ है लेकिन शबे तन्हा.. सुबह तन्हा
कहीं लगता नहीं ये दिल जिसे देखो वही तन्हा !
बरसते बादलों में भीगते दिखता नहीं कोई
घरों में कैद हैं अपने, सड़क तन्हा गली तन्हा !
मोहब्बत भी बदल के इस तरह कुछ हो गई अब तो
मिले दो पल, हवस निपटी, दिलो धड़कन रही तन्हा !
वो पगडंडी जहां पर दौड़ कर मिलते थे यारों से
सड़क वो हो गई चौड़ी हमें पर कर गई तन्हा !
भरे बाजार, शॉपिंग मॉल हैं रंगीन दिखता सब
मगर बदरंग है हर शय हकीकत में सभी तन्हा !
ये सन्नाटा अकेलापन रगों में बह रहा ऐसे
चलेंगी जब तलक साँसे रहेंगे सब यूँ ही तन्हा !
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या को शब्द दिए बहुत-बहुत बधाई
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