Posts

'यथार्थ' का बलात्कार

अभी  हाथ में न्यूज़ पेपर लेकर बैठा ही था कि  दरवाज़ा जोर जोर से पीटने की आवाज़ आई, मैं समझ गया कि द्विवेदी जी आ गए हैं क्योंकि वही दरवाज़े पर इस तरह दस्तक देते हैं।  वो अलग बात है कि उनकी ऐसी खतरनाक दस्तक मेरे मन में दहशत भर देती है कि वे कहीं दरवाज़े सहित ही अंदर न आ जाएँ अतः मैं भाग कर दरवाजा खोलने के लिए उठा और दरवाज़े के  स्वतः खुलने से पहले ही उसे खोलने में कामयाब रहा। दरवाज़ा खोलना था कि द्विवेदी जी ने राकेट के जैसे कमरे में प्रवेश किया और सोफे को हिरोशिमा समझ कर  उस पर परमाणु बम की तरह धम्म से गिर पड़े। मैंने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास पहुंच कर ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए पूंछा, " कहिये कैसे आना हुआ द्विवेदी जी ?" उन्होंने मेरे खिचड़ी नुमा इस साधारण से प्रश्न का  मटन कोरमानुमा स्वादिष्ट उत्तर देते हुए कहा, "अजी इधर से गुज़र रहे थे तो सोचा तुमसे मिलते चलें इसी बहाने कुछ गपशप हो जाएगी और चाय पानी भी हो जायेगा। " अच्छे मेजबान का फ़र्ज़ अदा करते हुए मैं उनके चाय पानी और गपशप की  मांग पूरी करने में लग गया तब तक वो मेज पर रखे पेपर को उलट...

सिंघासन पर सैन्डिल

उन्होंने मुझपर एक नज़र डाली और निराश होकर बोले  "तुम्हारे समाचार पत्र के संपादक ने तो कहा था कि इंटरव्यू लेने के लिए लड़की को भेजेंगे " उनकी बात सुनकर शायद मैं दुनियां का पहला ऐसा व्यक्ति हूँगा जिसे अपने पुरुष होने पर दुःख  हुआ ,फिर भी बुझे मन से अपने संपादक की तरफ से सफाई देने लगा और आखिरकार मैं उनको इस वादे के साथ मनाने में कामयाब रहा की अगली बार उनकी पसंदीदा रिपोर्टर ही उनका इंटरव्यू लेगी। मंत्रीजी बड़े अनमने से इंटरव्यू के लिए राज़ी हुए तो मैंने पहला प्रश्न किया "आप बहुत से विवादों से घिरे हुए हैं" मेरे मुंह से प्रश्न निकलते ही वो उसपर झपट पड़े और बोले "सार्वजनिक जीवन जिना है तो भीर विवादों से क्या डरना ,विवाद तो गांधीजी को लेकर भी हुए थे " ये कहते हुए उन्होंने अपने आलीशान ड्राइंगरूम में लगी गाँधी की तस्वीर  को मुस्कुराकर  देखा।तस्वीर में गाँधी भी मुस्कुरा रहे थे ,लेकिन न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि मंत्रीजी की गहरी राज़दार मुस्कराहट के आगे गाँधी की मुस्कराहट विलुप्त सी हो गई है। मैंने संभलकर अगला प्रश्न किया "आप पर अवैध रूप से चरस, गांजा और ...

आखिर तुम ऐसे क्यों हो

क्यों तुम्हें स्वतंत्रता रास नहीं क्यों तुम पर दीप्त प्रकाश नहीं खुद पर तुमको विश्वाश नहीं बिन आश के जीवन जीते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! हसते हो आहः निकलती है शीतलता भी तुमको छूकर अग्नि समान धधकती है बंजर सा अंतःकरण लिए निर्वात में विचरण करते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! अलसाए से कुम्हलाए से खुदपर ही कहर सा ढाए से उत्साह रहित इस जीवन में बनकर तेजाब बरसते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! गलियों में विचरण करते हो स्थिर होने से डरते हो अँधेरे और सन्नाटे को हमराज़ बनाए फिरते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! सौंदर्य प्रेम का आकर्षण क्यों तुमको नहीं लुभाता है माधुर्य लिए बसंत मौसम क्यों तुमको नहीं सुहाता है ईर्ष्या, कटुता,आतंक लिए बिन बात झगड़ते रहते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! लालच के हवनकुण्ड में अपनी आहुती दे डाली नैतिकता और आदर्शो को तुमने बना दिया गाली  नीरसता भरे हदय में आनंद डुबोकर रखते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! इस तरह विकास किया तुमने की खुद का सत्यानाश किया निर्बल पर अत्याचार किया बलवानो को स्वीकार किया यदि यही सत्य है जीवन का तो क्यों मर -मर के जीते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो !     ...

परिधि के उस पार

कहा जाता है कि एक पौधे के विकास के लिए दो आवश्यक शर्ते होती हैं पहली उसकी बीज की गुणवत्ता , दूसरा उसको प्रदान किया गया वातावरण। बीज में चाहे जितने ही गुण क्यों न हो अगर उसे ऐसे ही फेंक दिया जाये तो उसके विकास की संभावनाए समाप्त हो जाती है। यही नियम मनुष्य के विकास पर भी लागू होता है लगभग सभी मनोवैज्ञानिक इस पर सहमत हैं की आनुवंशिक गुणों के साथ वातावरण भी बच्चों के विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। भारतीय परिवेश में बाल विकास की क्या स्थिति है यह एक गंभीर प्रश्न है, यहाँ की शिक्षा पद्धति तथा सामाजिक वातावरण सभी प्रश्न के घेरे में हैं। यहाँ पर अभिभावक अपने  बच्चो को पूँजी की तरह समझते हैं जिस तरह पूँजी का निवेश होता है, उस पर नियंत्रण रखा जाता है उसी तरह यहाँ अभिभावक भी बच्चों का जिस क्षेत्र में चाहते हैं निवेश करते हैं और उन पर नियंत्रण रखते हैं। उनके विचार, उनका द्रष्टिकोण सभी कुछ अभिभावक ही निर्धारित करते हैं। वे बच्चो के विचारों पर अपने खोखले आदर्शवाद और अनुशासन की मोटी परिधि बना देते हैं मजाल है कि कोई बच्चा इसके उस तरफ भी देख ले। वे हस्तांतरित विचार, परम...