सिंघासन पर सैन्डिल

उन्होंने मुझपर एक नज़र डाली और निराश होकर बोले  "तुम्हारे समाचार पत्र के संपादक ने तो कहा था कि इंटरव्यू लेने के लिए लड़की को भेजेंगे "
उनकी बात सुनकर शायद मैं दुनियां का पहला ऐसा व्यक्ति हूँगा जिसे अपने पुरुष होने पर दुःख  हुआ ,फिर भी बुझे मन से अपने संपादक की तरफ से सफाई देने लगा और आखिरकार मैं उनको इस वादे के साथ मनाने में कामयाब रहा की अगली बार उनकी पसंदीदा रिपोर्टर ही उनका इंटरव्यू लेगी।
मंत्रीजी बड़े अनमने से इंटरव्यू के लिए राज़ी हुए तो मैंने पहला प्रश्न किया "आप बहुत से विवादों से घिरे हुए हैं"
मेरे मुंह से प्रश्न निकलते ही वो उसपर झपट पड़े और बोले "सार्वजनिक जीवन जिना है तो भीर विवादों से क्या डरना ,विवाद तो गांधीजी को लेकर भी हुए थे "
ये कहते हुए उन्होंने अपने आलीशान ड्राइंगरूम में लगी गाँधी की तस्वीर  को मुस्कुराकर  देखा।तस्वीर में गाँधी भी मुस्कुरा रहे थे ,लेकिन न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि मंत्रीजी की गहरी राज़दार मुस्कराहट के आगे गाँधी की मुस्कराहट विलुप्त सी हो गई है।
मैंने संभलकर अगला प्रश्न किया "आप पर अवैध रूप से चरस, गांजा और भाँग आदि नशीले पदार्थों की तश्करी  का आरोप है ,इसके बारे में क्या कहेंगे ?"
"मैंने कोई अवैध काम नहीं किया है " उन्होंने  जोश में बोलना शुरू किया
"गांजा भाँग आदि पदार्थ अवैध नहीं हो सकते क्योंकि इनको तो स्वयं हमारे भगवान् भोलेनाथ ग्रहण करते हैं ,मैंने तो बस प्रसाद स्वरुप ये पदार्थ उनके भक्तों तक सुलभता से पहुचाने का प्रयास किया है, और अगर इसपर रोंक लगी तो हमारी धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं।"
उनका जवाब सुनकर मैं थोड़ी देर के लिए शुन्य में चला गया लेकिन फिर उनकी चील सी नज़रें अपने ऊपर महसूस करके पुनः चेतना में आगया और अगला प्रश्न  किया।
"कुछ लोगों का ऐसा कहना है की राजनीति में आने से पहले आप चादनी चौक के जाने -माने चोर थे,क्या ये  सत्य है ?"
"अगर सही भी है तो कौन आसमान टूट पड़ा।" मंत्री जी  सपाट लहजे में बोले।
"हमारे इतिहास में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनमें से अधिकतर पहले चोर ही थे।कृष्ण, द्वारिकाधीश बनने से पहले माखनचोर थे।
बाल्मीकि, ऋषि बनने से पहले बहुत बड़े ठग थे।
गाँधी जी ने भी बचपन में चोरी की थी।"
मैंने इस तरह इतिहास को अपने पक्ष में प्रयोग करते किसी को नहीं देखा था,अतः हतप्रभ रह गया परन्तु स्वयं पर नियंत्रण कर पुनः प्रश्न किया।
"विपक्षी दलों का आरोप है कि जिस देश की जनता ने आपको भारी बहुमत से चुना था ,आपने उसे ही चूना लगा दिया।"
"कमाल करते हो यार "मंत्रीजी पानदान से पान निकालते होए बोले।
"मैं पान तक में चूना नहीं लगाता हूँ ,जनता को क्या लगाऊंगा।बल्कि मैं तो जनता का सेवक हूँ ,शायद इसीलिए मेरे घरवालों ने मेरा नाम 'सेवकराम' रखा था।"
"आपको पता है पत्रकार महोदय "वे मुझसे मुखातिब होकर बोले
"सेवा हदय का एक 'भाव' है लेकिन आजकल ये 'बाज़ार के भाव' के निचे दब गया है। फिरभी हम 'बाज़ार के भाव' और 'सेवा के भाव ' दोनों के बीच सामंजस्य बिठाकर चलते हैं,यही विपक्षी दलों को अच्छा नहीं लगता है।"
इस बार मैंने मौका नहीं खोया और अपने दिल की बात हिम्मत के घोल में तलके कहा।
" ऐसा क्यों है की आपकी सरकार में कोई भी काम बिना रिश्वत के नहीं होता है ? "
उन्होंने मुस्कुराकर प्रश्न का सामना किया और बोले "तुम्हें रिश्वत के पीछे का मर्म नहीं मालूम है इसलिए ऐसी बात कर रहे हो।"
मुझे 'मर्म ' तो नहीं पता था पर मैं इतना ज़रूर समझ गया कि  ये 'मर्म' ज़रूर भारतीय संविधान के उस  'उपबंध' के जैसा होगा जो कठोर से कठोर 'अनुच्छेद ' को नपुंसक बना देता है।
मंत्रीजी मर्म समझाते हुए बोले "रिश्वत लेना और देना तो हमारी परंपरा  में शामिल है और हम भारतीय अपनी गर्दन तो तोड़वा  सकते हैं परन्तु परम्परा नहीं तोड़ सकते हैं।आदि काल में ये राजा महराजाओं को नज़राने के तौर पर दी जाती थी।ईश्वर और मनुष्य का मिलन भी चढ़ावे के रूप में दी गई रिश्वत के बाद ही संभव है ,जितना बड़ा  चढ़ावा  उतने ही दिव्य दर्शन। रिश्वत ने तो 'रस्म ' का रूप ले लिया है, जब साली जूते चुराकर नेग के रूप में रिश्वत मांगती है तो जीजाजी साली की धारदार मुस्कराहट से घायल होकर अपनी जेब ढीली कर देते हैं , इस तरह देखा जाए तो रिश्वत हमारी संस्कृति का हिस्सा है।रिश्वत देने वाले और लेने वाले दोनों ही निष्काम भाव से इस परंपरा का निर्वहन करते हैं, इससे परेशानी उन फटीचरों को होती है जिन्हें ना रिश्वत मिलती है और न उनके पास देने के लिए कुछ होता है।ऐसे लोग ही ईर्षा के वशीभूत होकर  इस परंपरा के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं।"
इतना कहकर उन्होंने जोर से मुह खोलकर डकार ली जिससे उनका भरी भरकम उदर हिलकर शांत हो गया। मैंने उनके खुले हुए मुह में ये सोच कर झाँका कि जिस तरह यशोदा ने कृष्ण के खुले मुख में समस्त ब्रम्हाण्ड के दर्शन कर लिए थे , मुझे ब्रम्हाण्ड ना सही 15-20 V V I P हैलीकाप्टर एक उनकी मुख की कक्षा में चक्कर काटता 2 G  स्पेक्ट्रम ,25 -3 0 कोयले की खाने दिख जाएँगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ अतः निराश होकर यही प्रश्न कर दिया   " हाल ही में हुए अनेक घोटाले आप के गठबंधन वाली सरकार की छवि धूमिल कर रहे हैं,कभी    2 G ,कभी कोलगेट और फिर V V I P हैलीकाप्टर घोटाला ,आप को नहीं लगता ये सरकार की नाकामी है"
घोटालो का नाम सुनकर वे शेष सैया पर लेटे विष्णु भगवान् की मुद्रा त्याग कर कैलाश पर स्थित शिव की एकाग्र मुद्रा में आ गए और बोले "एक बात बताओ भाई ये 'V V I P हैलीकाप्टर'  V V I P लोंगो के लिए चलने के लिए था और उन्होंने ही घोटाला कर दिया ,तुमको तो उसपर चलना नहीं था फिर तुम्हारे पेट में क्यों ऐठन हो रही है ?
रही बात घोटालों की तो मनुष्य प्रवत्ति  से ही घोटाले बाज़ है उसे अगर मौका मिला तो वो घोटाला ज़रूर करेगा इसमें इतना गला फाड़ने की ज़रूरत नहीं है।"
इतना कहकर वो चुप हो गए फिर पान के साथ अपने गुस्से को थूक फिरसे आराम वाली मुद्रा में आकर बोले
"इसलिए हमारी सरकार संसद में एक बिल ला रही है जिसमें 1 रुपये में 3 0 पैसे घोटाले बाजों के लिए और 7 0  पैसे जनता के लिए ,इससे दोनों ही संतुष्ट हो जाएँगे और विवाद ख़त्म हो जाएगा।"
नेताजी का तमतमाया हुआ चेहरा बता रहा था की मैंने उनकी दुखती  रग पर उंगली रख दी है इसलिए मुद्दा बदलने के उद्देश्य से मैं अगले प्रश्न की ओर बढ़ा  "विपक्षी  दलों का कहना है कि ...."
मेरे प्रश्न के पूरा होने से पहले ही मंत्रीजी फट पड़े    "इन 'विपक्षियों' ने तो हम पक्षियों का जीना मुहाल कर दिया है , जब देखो तब जाल फैलाकर  हम भोले -भाले 'पक्षियों को फासने की कोशिश में लगे रहते हैं। हमारे कार्यकाल का आधा समय तो विपक्षियों द्वारा उत्पन्न कलह से निपटने में और बाकी का आधा अपने 'पक्षियों ' के अन्तः कलह से निपटने में ही बीत जाता है ,जनता की सेवा क्या करें ...घंटा।
उनका आखरी शब्द (घंटा )अपने गुण के समान मेरे मस्तिष्क में बजा और मेरे पूरे शरीर में झुनझुनी चढ़ गयी। मेरे धैर्य के साथ - साथ इंटरव्यू  का समय भी समाप्त होने वाला था अतः बचे समय में मैंने अंतिम प्रश्न किया  "आपकी पार्टी पर एक आरोप ये भी है कि पार्टी ने एक कमज़ोर व्यक्ति को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया है, इस बारे में आप का क्या कहना है ?"
" इस आरोप का कोई भी आधार नही है "  मंत्रीजी ने  शांत भाव में बोलना शुरू किया।
" आप किसी की स्वामिभक्ति को उसकी कमजोरी नहीं कह सकते हैं ,हमारे प्रधानमंत्री जी भरत की तरह त्यागी पुरुष हैं। जिस तरह भरत ने  1 4 वर्षों तक राज -पाठ सिंघासन पर खड़ाऊं रख कर चलाया था, उसी प्रकार हमारे प्रधानमंत्री जी भी चला रहें हैं। अंतर बस इतना है की सिंघासन पर खड़ाऊं के स्थान पर चमचमाती हुई  ' सैंडिल ' रखी हुई हैं। भरत और प्रधानमंत्री जी में इतनी समानता होने के बाद आप भरत को तो महान कहते हैं पर प्रधानमन्त्री जी को कमज़ोर समझते हैं , ये दोहरा मापदंड सही नही है "
उन्होंने अपनी बात समाप्त ही की थी की तभी उनका एक नौकर आकर बोला  " साहब आपको अभिनय सिखाने वाले अध्यापक आ गए हैं और आप का इंतजार कर रहे  हैं।
नौकर की बात सुनकर मैं चौंक गया और अनायास प्रश्न कर दिया  " आप इस उम्र में अभिनय सीख रहें हैं , क्या फिल्मों में काम करने जा रहें हैं ?"
तुम क्या समझते हो , अभिनय केवल फिल्मों के लिए ही ज़रूरी है "  मेरे प्रश्न के उत्तर में उन्होंने मुझसे ही प्रश्न कर दिया और मेरे उत्तर का इंतजार ना करते हुए स्वयं ही जवाब देने लगे  " राजनीति में अभिनय का महत्व दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है।अब नेता होने के लिए अभिनय आना बहुत आवश्यक है। अभी एक अल्पसंख्यक की मौत पर  विपक्षी दल के नेता ने  जाकर इतना अच्छा रोने का अभिनय किया की मरने वाले  की पत्नी को भी लगा कि मेरे पति  के मरने का दुःख नेता जी को मुझसे भी ज्यादा है। फिर क्या था ,विपक्षी नेता सिम्पैथी की दो तीन बोरियां भर कर वापस आ गया। मंत्री जी ने अपना दुःख व्यक्त किया और साथ ही अभिनय के महत्व पर प्रकाश भी डाला।
"इस लिए मैं भी अभिनय सीख रहा हूँ ताकि एक अच्छा नेता बन सकूँ और देश का कल्याण कर सकूँ।"
नेता जी ने अपनी बात समाप्त की।
" देश का भविष्य क्या होगा "  मैंने डरे मन से आशंका व्यक्त की लेकिन नेता जी इसे भी प्रश्न समझ कर बोले
"देश का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है। " इतना कहकर वो  हँसने लगे।
उनकी हंसी और  देश के प्रति उनका दावा, दोनों का खोखलापन बिल्कुल वित्तमंत्री के उस बैग की तरह था जिसे बजट प्रस्तुत करने से पहले वो जनता को दिखाते हैं और विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं की
उनकी (जनता की ) समस्त परेशानियों  का का इलाज इस 1 4 *1 2 c m लम्बे बैग के अन्दर कैद है जिसे अभी थोड़ी देर बाद वो संसद के अन्दर खोल देंगे और चारों ओर खुशहाली छा जाएगी।
इंटरव्यू   समाप्त हो चुका था मैं अपना सामान बटोर कर और मंत्रीजी को नमस्कार बोल कर जाने ही वाला था , तभी अपने अन्दर मुझे ऐसा  महसूस हुआ जैसे कुछ कचोट सा रहा है तब मैंने पहली बार जाना की आदर्शवादी दार्शनिक ज़रूर इसे ही अंतरात्मा कहतें हैं जो मुझे अन्दर से कचोट रही है अतः ना चाहते हुए भी  मैं मंत्रीजी से बोला " आपने कुछ भी सत्य नही कहा है। "
मेरी बात सुनकर उन्होंने मुझे ध्यान से देखा और भगवान् बुद्ध की तरह मंद - मंद मुस्कुराते हुए आखें बंद कर ली फिर कुछ देर बाद पुनः आखें खोलकर मुझसे बोले  "एक बात मैं तुम्हें बताता हूँ पत्रकार महोदय ,उसके बाद तुम्हारा सारा भ्रम दूर हो जाएगा और अगर तुमने इसे आत्मसात कर लिया तो मोक्ष की प्राप्ति   हो जाएगी। "
उनकी बात सुनकर मुझे लगा की मुझे भी अर्जुन की तरह विराट रूप के दर्शन होने वाले हैं ,अतः सतर्क होकर बैठ गया।
मंत्रीजी ने बोलना शुरू किया  "इस दुनियां में कुछ भी सत्य नही है ,जो कुछ है 'तर्क ' है जिसे आज तुम सत्य समझते हो , उसे कल तर्कों द्वारा असत्य आबित किया जा सकता है और जिसे असत्य समझते हो उसे तर्कों द्वारा सत्य साबित किया जा सकता है। सत्य आस्तित्वविहीन है ,ये मात्र तर्कों के माध्यम से व्यक्त होता है। अतः सत्य असत्य के मोह में ना पड़ो  केवल तर्क सुनो, तर्क देखो , तर्क समझो। "
मंत्रीजी ने अपनी बात समाप्त कर पुनः आखें बंद कर ली और मैं सत्य और तर्क की उधेड़बुन से नए ताने बुनता हुआ बाहर निकल गया।

         
                                                                                         - दीपक शर्मा  'सार्थक '

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