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Showing posts from December, 2023

प्रेम गीत

घटाओं में खुशबू बिखरने लगी है हंसी तेरे अधरो पे खिलने लगी है सरोवर में खिलते कमल पुष्प जैसे नयन ये कथानक नया लिख रहे हैं  गुलाबी ये गालों की रंगत है जैसे प्रकृति ने स्वयं ही इन्हें रंग दिए हैं घने गेसुओं को संवारा है जबसे मेरी उलझने भी सुलझने लगी हैं घटाओ में खुशबू बिखरने लगी है हंसी तेरे अधरों पे खिलने लगी है (१) जेहन में नयन ये बसे हैं तुम्हारे गहन इस अंधेरे में दीपक के जैसे नजर भर के जिसपे नजर तुमने डाली हृदय को वो अपने संभाले भी कैसे सदा निष्कपट नेत्र, निश्छल निगाहें निहित प्रेम से ही निखरने लगी हैं घटाओ में खुशबू बिखरने लगी है हंसी तेरे अधरों पे खिलने लगी है (२)               © दीपक शर्मा ’सार्थक’

खामोश लहज़ा

ये खामोश लहेज़ा टटोला ही जाए जरूरी नहीं है कि बोला ही जाए ! ज़हर ही ज़हर दिख रहा जिंदगी में तो क्यों न तबीयत से घोला ही जाए ! दफन है जो किरदार सदियों से दिल में परत दर परत उसको खोला ही जाए ! ज़माने से बैठे हैं चौखट पे तेरी चलो अब कहीं और डोला ही जाए ! ये माना है ग़ुरबत तो क्या इसका मतलब मोहब्बत को दौलत से तोला ही जाए !                    ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

हृदय की जटिल प्रकिया

हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है किसी के हृदय पे अहम का है पर्दा कहीं पर वहम ही परछाइयां हैं कहीं तो हृदय की जगह पे है पत्थर कभी दुनियादारी की पाबंदियां हैं  ये संवेदनाएं सुनाएं भी किसको ये मतलबपरस्ती कि ही बस्तियां हैं हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है ! कहीं उलझनों का बिछा जाल है तो किसी के हृदय में भरी है उदासी द्रवित है कोई दर्द में इक क़दर की दिखे है उसे बस निराशा ख़ुमारी किसी को किसी पे भरोसा नहीं है महज स्वार्थपरता से ही सब क्रिया है हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है ! कोई प्रेम को जो उजागर भी कर दे तो दूषित प्रथाएं निगल जाएं उसको पसोपेश में ही फंसे हैं यहां सब कोई हाल-ए-दिल भी सुनाए तो किसको ये उलझन, ये पीड़ा, ये आंसू सभी के हृदय में सहज ही कोई भर दिया है हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है !                 © दीपक शर्मा ’सार्थक’