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राम हैं त्याग..त्याग हैं राम

राम बसे हैं त्याग में,जग  ढूंढे उनको अधिकारों में जिसने त्याग दिया सिंहासन तत क्षण जैसे तिनका सा  राष्ट्रधर्म पालन में जिसने त्याग किया निज वनिता का त्याग किया सर्वस्व सुखों का चले सदा अंगारों में राम बसे हैं त्याग में, जग ढूंढे उनको अधिकारों में  कर्तव्यों की राह पे चलकर राम ने यश को पाया था अधिकारों की जगह राम ने त्याग का पथ अपनाया था मरा–मरा जप रहे भूलवश लोग घने अंधियारों में राम बसे हैं त्याग में, जग ढूंढे उनको अधिकारों में  राम के नाम पे अधिकारों का जो षड्यंत्र चलाते हैं भूमि के टुकड़े की खातिर आपस में सबको लड़वाते हैं राम हैं तीनों लोक के स्वामी नेति–नेति संसारो में राम बसे हैं त्याग में, जग ढूंढे उनको अधिकारों में            © दीपक शर्मा ’सार्थक’

भूख और रोटी

रूप रोटी का बदल के जबसे पिज्जा हो गया है भूख भी तब्दील होकर के हवस सी बन गई है ! अब गुजारे में नहीं दो जून की रोटी है काफी नित्य बाजारीकरण से लालसाएं बढ़ गई हैं ! नोच करके कफ़न भी ये खा रहे हैं पशु के जैसे गिद्ध इंसानों में शायद होड़ जैसी लग गई है ! निज धरा को चीर करके कर रहे दोहन अनर्गल रक्त पीने की पिपासा कम न लेकिन पड़ रही है ! मर रहे थे भूख से वो आज खाकर मर रहे हैं खा के मैदा, नमक, चीनी  शुगर प्रतिपल बढ़ रही है ! भिज्ञ होकर भी बना अनभिज्ञ बैठा है ज़माना पर कभी नज़रें चुराने से मुसीबत कम हुई है ?           ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’             मो. नं. – 6394521525