सोचें या न सोचें
पहली और सबसे जरूरी बात, सही से सोचना शुरू करें। इसी तरह कभी-कभी ये भी जरूर सोचे की आखिर आप क्या सोच रहे हैं। या यूं कह लें कि आखिर आप क्या सोचा करते हैं। और अगर आप बहुत बारीकी से सोचने के बाद ये समझने में सफल हो गए कि आखिर आप क्या सोच रहे हैं, तब इसके अगले चरण में आप ये सोचें कि आखिर आप जो सोच रहे हैं वही क्यों सोचते रहते हैं। ये भी सोचें कि कहीं ऐसा तो नहीं..कि आपकी सोच को कोई अदृश्य शक्ति, सोशल मीडिया या न्यूज चैनल, या पोस्टर बैनर के माध्यम से एक विशेष दिशा में सोचने को मजबूर कर रही है। ये भी सोचें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आपकी सोच पर आपका कोई अधिकार ही नहीं हैं। कोई दूर बैठा अपने मायाजाल से आपकी सोच को बुन रहा है। और कहीं ऐसा तो नहीं कि आप अपनी ही सोच के जाल में फंसते जा रहे हैं। ये कुछ उसी तरह घटित होता है जैसे किसी प्रोडक्ट का एडवर्टाइज आप टीवी पर बार-बार न चाहते हुए भी देखते हैं। वो ऐड हज़ारों बार आपकी आखों के सामने से गुजरता हैं। आपके न चाहते हुए भी आपके दिमाग में वो प्रोडक्ट फीड हो जाता है। और इसपर आपका कोई वश भी नहीं है। इस तरह यदि आप इस मायाजाल को सोचने और समझने में सफल हो...