राम स्तुति
नमामि राम हरे हरे!
त्रिगुणातीत त्रिलोकमय
हैं त्रिविक्रमं, दशरथ तनय।
वो तत्वदर्शी तपोमय नित
तमरहित सीता प्रणय।।
अज्ञेय अविरत नेति-नेति
सारे प्रतीकों से परे !
रम राम नाम प्रणाम राम
नमामि राम हरे हरे !
वेदांतपार विवेकमय
वाचस्पति अभिराम हैं।
विश्र्वेश प्रेम के व्योम वो
वैधीश हैं अविराम हैं ।।
क्षण में ही करते हैं क्षमा
वरप्रद सदा करुणा भरे !
रम राम नाम प्रणाम राम
नमामि राम हरे हरे !
मायापती मंजुल मनोहर
मृदुल मति मायारहित ।
मन से वो मर्यादित मुदित
निज भक्त का करते हैं हित ।।
सर्वज्ञ हैं सर्वत्र हैं
साकार हैं जो चित धरे !
रम राम नाम प्रणाम राम
नमामि राम हरे हरे !
सारंग सर संधान कर
खल कुल सहित संहार कर।
सर्वोपरि: सुर संत हित
सानिध्य का उद्धार कर।।
समदृष्टि सब पर शौम्य हैं
सदबुद्धि के संग हैं खड़े !
रम राम नाम, प्रणाम राम
नमामि राम हरे हरे !
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
Very good keep it up
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDelete