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बिचारे दुर्योधन!

निवस्त्र होते देखना तो पूरी सभा चाहती है बस कोई दुर्योधन बोल देता है ! चीरहरण तो पूरी सभा करना चाहती है बस कोई दुसाशन कर देता है ! बिचारे दुर्योधन ! काम पिपासा ज़ाहिर करके बदनाम हो जाते हैं और ये सभ्य समाज ! अपना दामन बचाता  गैरों पे  इल्ज़ाम लगाता अन्दर से आनंदित होकर आत्म मैथुन करता रहता है !           ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

सुई -कपड़ा

इक सुई ने मन मे ठान लिया वो एक मिशाल बनायेगी दो अलग तरह के कपडों को वो एक बना कर मानेगी इस ज़िद के वशीभूत होकर भाईचारे का धागा लेकर सुई महासमर में कूद पड़ी  मन कड़ा किए निष्ठुर होकर दोनो कपडों में चुभ चुभ कर धागे से दोनो को सिलकर वो एक जगह पर ले आई दोनो कपडों को घायल कर कपड़े जुड़ गए मगर सुई को इक बात बहुत ही चुभने लगी ये भरत मिलाप अधूरा था गिरहें कपड़ो में दिखने लगी जो साथ नहीं रहने वाले यदि उनको साथ में लाओगे परिणाम बुरा होगा उसका सुई की तरह पछताओगे          ● दीपक शर्मा 'सार्थक'