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Showing posts from September, 2018

अब इस घरौंदे को बदल दे !

अब इस घरौंदे को बदल दे संबन्ध की दीवार में सीलन बहुत ही आ गई रिश्तो की छत भी रिस रही बूंदे ज़मी पर आ रही जर्जर बहुत ही हो गई मौका है बच के तू निकल ले अब इस घरौंदे को बदल दे ! विश्वा...

मेरे शहर में !

मेरे शहर में ! ज़मीन तो महेंगी हैं ज़मीर पर सस्ता है ग़रीब ही बेबस है अमीर तो हंसता है मेरे शहर में ! उससे ही ख़तरा है करीब जो बसता है चोरो की चांदी है शरीफ ही फंसता है मेरे शहर म...