बहुत सलीके से करते हैं एकदम व्यवस्थित..आर्गनाइज़्ड ! कहीं कोई जान न जाए भीतर के अहसास कहीं जाहिर न हो जाए दिल की ख्वाहिशे बहुत सख़्त रखते हैं चहेरा एकदम सपाट..हार्ड ! कहीं दिख ...
दो-चार झूठ चार-पांच धोखे सात-आठ ज़ख्म और बन गया वजूद मेरा ! ढेले भर अकल दो टके समझ रत्ती भर सबर और बस गया शहर मेरा ! थोड़ी सी बेचैनी हल्की सी चुभन ज़रा सी तड़प और कट गया सफर मेरा !