रुक जा, जाने का नाम न ले न विरक्त गृहस्त से होना तू ! उगते रवि सा हो प्रशस्त सदा वैराग्य में अस्त न होना तू ! निष्काम ही कर्म तू करता जा बस लोभ में ग्रस्त न होना तू ! संसार के कुछ उद्...
हिमालय सा स्थिर नदी सा तरल हूँ हृदय में है अमृत जुबां से गरल हूँ ! सतह पर हूँ बहता कभी गहरा तल हूँ कहीं हूँ अस्थिर कहीं पर अटल हूँ ! कभी आने वाला कभी बीता कल हूँ युगों तक हूँ रहता ...