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आखिर तुम ऐसे क्यों हो

क्यों तुम्हें स्वतंत्रता रास नहीं क्यों तुम पर दीप्त प्रकाश नहीं खुद पर तुमको विश्वाश नहीं बिन आश के जीवन जीते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! हसते हो आहः निकलती है शीतलता भी तुमको छूकर अग्नि समान धधकती है बंजर सा अंतःकरण लिए निर्वात में विचरण करते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! अलसाए से कुम्हलाए से खुदपर ही कहर सा ढाए से उत्साह रहित इस जीवन में बनकर तेजाब बरसते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! गलियों में विचरण करते हो स्थिर होने से डरते हो अँधेरे और सन्नाटे को हमराज़ बनाए फिरते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! सौंदर्य प्रेम का आकर्षण क्यों तुमको नहीं लुभाता है माधुर्य लिए बसंत मौसम क्यों तुमको नहीं सुहाता है ईर्ष्या, कटुता,आतंक लिए बिन बात झगड़ते रहते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! लालच के हवनकुण्ड में अपनी आहुती दे डाली नैतिकता और आदर्शो को तुमने बना दिया गाली  नीरसता भरे हदय में आनंद डुबोकर रखते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो ! इस तरह विकास किया तुमने की खुद का सत्यानाश किया निर्बल पर अत्याचार किया बलवानो को स्वीकार किया यदि यही सत्य है जीवन का तो क्यों मर -मर के जीते हो आखिर तुम ऐसे क्यों हो !     ...

परिधि के उस पार

कहा जाता है कि एक पौधे के विकास के लिए दो आवश्यक शर्ते होती हैं पहली उसकी बीज की गुणवत्ता , दूसरा उसको प्रदान किया गया वातावरण। बीज में चाहे जितने ही गुण क्यों न हो अगर उसे ऐसे ही फेंक दिया जाये तो उसके विकास की संभावनाए समाप्त हो जाती है। यही नियम मनुष्य के विकास पर भी लागू होता है लगभग सभी मनोवैज्ञानिक इस पर सहमत हैं की आनुवंशिक गुणों के साथ वातावरण भी बच्चों के विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। भारतीय परिवेश में बाल विकास की क्या स्थिति है यह एक गंभीर प्रश्न है, यहाँ की शिक्षा पद्धति तथा सामाजिक वातावरण सभी प्रश्न के घेरे में हैं। यहाँ पर अभिभावक अपने  बच्चो को पूँजी की तरह समझते हैं जिस तरह पूँजी का निवेश होता है, उस पर नियंत्रण रखा जाता है उसी तरह यहाँ अभिभावक भी बच्चों का जिस क्षेत्र में चाहते हैं निवेश करते हैं और उन पर नियंत्रण रखते हैं। उनके विचार, उनका द्रष्टिकोण सभी कुछ अभिभावक ही निर्धारित करते हैं। वे बच्चो के विचारों पर अपने खोखले आदर्शवाद और अनुशासन की मोटी परिधि बना देते हैं मजाल है कि कोई बच्चा इसके उस तरफ भी देख ले। वे हस्तांतरित विचार, परम...