क्या जानोगे !
और बताओ क्या जानोगे पास तो आओ क्या जानोगे ! कहते हो सब जान गए हो बस मगरुर हो, क्या जानोगे ! मैं ही जब अंजान हूं खुद से फिर तुम मुझको क्या जानोगे ! चेहरा देख के दर्द न जाना कह भी दें तो क्या जानोगे ! जब सारा जग जान गया है तब जाना तो क्या जानोगे ! दर्द में जो खुल के हंसता हो उसके दर्द को क्या जानोगे जान है जबतक जान लो मुझको जान गई तो क्या जानोगे ! © दीपक शर्मा ’सार्थक’