कलाम ए जावेदा
आज से दो दिन पहले आदरणीया निशा सिंह नवल जी की ग़ज़ल संग्रह ( कलाम-ए-जावेदा) का विमोचन हुआ। मेरा सौभाग्य रहा कि उसी दिन मुझे ये पढ़ने को भी प्राप्त हो गई। विश्वास मानिए एक बार पढ़ना शुरू किया जब तक इसकी सारी ग़ज़लें पढ़ नहीं ली, मुझसे रहा नहीं गया। इस पुस्तक की हर एक ग़ज़ल अपने आप में एक पाठ्यक्रम की तरह है। जिसे आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उतार सकते हैं..कुछ सीख सकते हैं.. ख़ुशी में गुनगुना सकते हैं..द्रवित होने पर इन्हें पढ़कर करुणामय हो सकते हैं। हृदय से उत्पन्न होने वाले सभी भावों को भावविभोर कर देने वाली एक-एक ग़ज़ल, अपने आप में अनूठी और समाज में व्याप्त सभी विसंगतियों पर कटाक्ष करती नजर आती है। सिक्को में चंद सारा ये संसार बिक गया ईमान बिक गया कहीं किरदार बिक गया मोहताज़ कीमतों की थी हर शय जहान में क़ीमत मिली जो ठीक तो खुद्दार बिक गया सच कहने सुनने का कोई जरिया नहीं बचा चैनल के साथ–साथ ही अखबार बिक गया मुझे जो नजर आता है निशा जी की हर एक ग़ज़ल का शिल्प बहुत ही सुंदर तो है ही उसके साथ साथ वो बहुत ही सरल भी है।कोई कुछ भी बोले सरलता से बड़ी खूबसूरती कोई हो ही नहीं सकती। जटिल ...