आधुनिक मित्र
इक पुराने मित्र से हम दौड़ कर मिलने चले पूर्व की ही भांति सोचा आज फिर मिल लें गले ! चित्त में थे चित्र सारे मित्र संग जो पल बिताए मन था पुलकित और हृदय से हम नहीं फूले समाए ! किन्तु जब हम मित्र के सानिध्य में पहुचे अचानक मित्र का था भाव जैसे जब्त हो उसकी जमानत ! प्रेम आलिंगन को जैसे हम तनिक आगे बढ़े तो पास आता देख हमको दो कदम पीछे हटे वो ! हम चकित होकर के बोले मित्र देखो हम वही हैं मित्र बोला तुम वही हो किन्तु अब हम वो नहीं हैं ! मैं अकेला हूं नहीं अब साथ मेरे 'पद' जुड़ा है ढेर सारे धन के कारण कद मेरा बेहद बढ़ा है ! और बड़ा मुझसे भी मेरा मद है जो मुझमें समाया गर्व है मुझको की मैंने ढेर सारा यश कमाया ! अब हमारे मित्र बनने की नहीं हालत तुम्हारी तुम कहां हो मैं कहां हूं भिन्न है स्थिति हमारी ! इसलिए ये मित्रता का ढोल ऐसे न बजाओ यूं गले पड़ने को फूहड़ की तरह ऐसे न धावो ! युग नहीं ये मित्रता का स्वार्थ से संबंध सारे अब नहीं केशव सुदामा मित्रता का बिम्ब प्यारे ! इ...