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Showing posts from March, 2021

राम स्तुति

रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे! त्रिगुणातीत त्रिलोकमय हैं त्रिविक्रमं, दशरथ तनय। वो तत्वदर्शी तपोमय नित  तमरहित सीता प्रणय।। अज्ञेय अविरत नेति-नेति सारे प्रतीकों से परे ! रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे ! वेदांतपार विवेकमय वाचस्पति अभिराम हैं। विश्र्वेश प्रेम के व्योम वो  वैधीश हैं अविराम हैं ।। क्षण में ही करते हैं क्षमा वरप्रद सदा करुणा भरे ! रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे ! मायापती मंजुल मनोहर मृदुल मति मायारहित । मन से वो मर्यादित मुदित  निज भक्त का करते हैं हित ।। सर्वज्ञ हैं सर्वत्र हैं  साकार हैं जो चित धरे ! रम राम नाम प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे ! सारंग सर संधान कर खल कुल सहित संहार कर। सर्वोपरि: सुर संत हित  सानिध्य का उद्धार कर।। समदृष्टि सब पर शौम्य हैं सदबुद्धि के संग हैं खड़े ! रम राम नाम, प्रणाम राम नमामि राम हरे हरे !         ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

और डूब के जाना है

प्रेम में जो बह गए  नदी की तरह प्रेम में जो ढह गए  हिम खंडों की तरह वो जा मिलते हैं समुद्र से  और पा लेते हैं अपनी मंजिल ! पर जो प्रेम नहीं बहते  नदी की तरह  वो हो जाते हैं बहाव रहित  गड्ढे में भरे जल की तरह! फिर वो लगते हैं सड़ने  जमने लगती है काई  फैलाते हैं दुर्गंध  और फिर जाते हैं सूख! प्रेम में जो टूट गए  पके फल की तरह  समझो तर गए  वो कर के खुद को नष्ट  बीज से बन जाता है वृक्ष ! पर जो नहीं टूटे  आसानी से और चिपके रहते हैं  अपने डंठल से  वो रह जाते हैं अधकचरे  पड़ते हैं उनमें कीड़े  कहने को होते हैं जिंदा  पर मरघट है उनका वज़ूद!            ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'