वो भगवान बन गया !

मिट्टी के घर को छोड़ के
दौलत की चाह में
बेजान पत्थरों का इक
मकान बन गया !

दामन ज़रासा क्या फटा
आलम तो देखिए
अपनो की महेफिलों में भी
अंजान बन गया !

कर्जे की बली चढ़ गया
ऐसा किसान हूँ
उतरे न जो कभी भी
वो लगान बन गया !

हीरा तलाशने में
कुछ यूँ हुए घायल
वीरान कोयले सी
कोई खान बन गया !

ऐसे तो शराफत के
मुखौटे से हूँ ढ़का
मौका ज़रा मिला नही
शैतान बन गया !

दिल की कभी दिमाग़ की
बातों में आके मैं
तलवार दो सम्भालती
मियान बन गया !

बातों के तीर मार के
घायल किया सबको
बनने चला था ढाल,पर
कमान बन गया !

मेरी समझ से है परे
इस देश का विधान
हमने चुना था नेता
वो भगवान बन गया !

     © दीपक शर्मा 'सार्थक'

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !