चलो मान लिया !
तुम ही गए हो जीत
नफ़रत की जंग में
मेरी हुई है हार
चलो मान लिया !
हमने कि मोहोब्बत
हमने कि इबादत
हम ही हैं गुनहगार
चलो मान लिया !
इक रोज गले से
हमको लगाओगे
अब तक था इन्तज़ार
चलो मान लिया !
मसरूफ़ बहुत हो
दुनियां की भीड़ में
फुर्सत नहीं है यार
चलो मान लिया !
मालूम है मुझे
तुझको क़दर नहीं
फिर भी मुझे है प्यार
चलो मान लिया !
हरदम लहू की चाह में
प्यासा है शहर ये
हर दिल में बसती रार
चलो मान लिया !
जो फूट डाल कर
आपस में लड़ा दे
उसकी बने सरकार
चलो मान लिया !
इस भीड़तंत्र को
कहते हो लोकतंत्र
किसका है ऐतबार
चलो मान लिया !
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
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