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पंडित छन्नूलाल मिश्र

पठ्यं गीत्यं च मधुरं प्राणिनां प्राणमुत्तमम्। प्रीयमाणं जनैः सर्वैः त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्॥ (वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड 4.7) शास्त्र कहते हैं कि पाठ करने में या गाने में मधुरता का खयाल रखो। आज ये ज्ञान देने वाला चला गया। रैप म्यूजिक ( या कह लो संगीत का रेप{बलात्कार} ) पसंद करने वाले या दोअर्थी अश्लीलता भी जिसे देख के शर्मा जाए ऐसे भोजपुरी गाने सुनने वाले लोग शायद जान भी नहीं पाए कि शास्त्रीय संगीत में ओश की तरह कोमल ठुमरी, कजरी गाने वाले पंडित छन्नूलाल मिश्र अब नहीं रहे। "कुछ भी बोलने में या गाने में मधुरता का खयाल रखो !" पंडित जी का ये ज्ञान वो समाज समझेगा भी कैसे जिसे मधुरता का मतलब तक नहीं पता। और फिर आजकल मधुरता का खयाल किसे है!! ये वो समाज है जिसे पंडित भीमसेन जोशी के अलाप पर हंसी आती है, जिसे बिस्मिल्ला खां की शहनाई की वेदना वाली धुन.. पीपहरी की बोझिल तान लगती है। लेकिन ध्यान से देखा जाए तो ऐसे लोग किस पर हंस रहे हैं ?? दरअसल वो अपनी मूर्खता के कारण खुद पे हंसते हैं, क्योंकि शास्त्रीय संगीत इतना पवित्र और व्यापक है कि उनकी तुच्छ बुद्धि वहां तक पहुंचती ही नहीं, और यही ...