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किसान का दर्द

दर्द किसान का राम ही जाने सब्र का बांध गया है फूट ! बिन मौसम मल्हार गा रहे इंद्र देवता जबसे  वज्रपात ओला बारिश की झड़ी लग गई तबसे फसल बेच, बेटी ब्याहेगा सपने सारे गए हैं टूट  दर्द किसान का राम ही जाने सब्र का बांध गया है फूट (१) औने–पौने भाव बिक गए चना बाजरा तिलहन गिरवी खेत हुआ, खर्चे से व्याकुल हुआ है तन–मन थे किसान, मजदूर हो गए साहूकार रहा है लूट दर्द किसान का राम ही जाने सब्र का बांध गया है फूट (२) खड़ी फसल चर गए जानवर घर ना आया दाना कहीं बाढ़ तो कहीं है सूखा  मुश्किल है सह पाना दुगनी आय हुई खेतिहर की युग का सब से बड़ा है झूठ दर्द किसान का राम ही जाने सब्र का बांध गया है फूट (३)          ©दीपक शर्मा ’सार्थक’