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पर्यावरण और हम

आज पर्यावरण प्रेमियों ने अपना पर्यावरण प्रेम जाहिर करके पूरा सोशल मीडिया हिलाकर रख दिया है। हरे-भरे स्टैटस देख-देख के मेरी आखें तर गईं है। प्रकृति प्रेम और उसके संरक्षण को लेकर लंबी-लंबी  लिफ्फेबाजी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर की जा रही है। पर हकीकत ये है कि ऐसे पर्यावरण प्रेमी मात्र सोशल मीडिया के कीड़े भर हैं। या यूं कह लें कि ये सोशल वाइरस हैं, और वाइरस के बारे में मशहूर है कि वो वैसे तो मृत अवस्था में रहते हैं लेकिन जैसे ही अनुकूल वातावरण मिलता है ये जीवित हो जाते हैं।  इसी तरह ये पर्यावरण प्रेमी पर्यावरण दिवस वाले दिन जीवित हैं (या कम-से-कम जीवित होने का दिखावा भर करते हैं) और जैसे ही दिन खत्म होता हैं इनकी पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी संवेदनाएं मृत हो जाती हैं।  इस विशेष दिवस पर पौधों की नर्सरी से लगाने के लिए पेड़ मंगाए जाते हैं। फिर तुलसीदास की शैली में बोलें तो ,  " बिनु पग चले सुने बिनु काना..कर विधि कर्म करे बिधि नाना।" वाले दिव्य नेता जी उस पौधे को लगाने या कह लें उस निरीह पौधे को लगाते हुए अपनी फोटो खिंचवाने के लिए आते हैं। फिर उस पौधे को लगाकर वो विभिन्न मुद...