भलमनसाहत की चाहत
अरे वो भले आदमी हैं.… पडोसी के बारे में ऐसा सुनते ही जी हुड़क के रह गया। ये तो कहो कि डाक्टर ने रक्त परिवहन में ज़्यादा ट्रैफिक को देखते हुए बाईपास रुट (सर्जरी )बना दिया था, नहीं तो हृदयाघात होना तय था। उसी दिन से ठान लिया की मैं भी भला आदमी बन कर दिखाऊंगा। उसके लिए सबसे पहले तो मैंने अपने एक तथाकथित भले मित्र के साथ रहना प्रारम्भ किया क्योंकि 'संगत से गुण होत है,संगत से गुण जाए। '.. ऐसा मैंने अपने मनपसंद दारू के ठेके के सामने जो गांधी महाविद्यालय है,वहां की दीवार पर लिखा देखा था। शरीर में बह रहे देसी ठर्रे के साथ तैरती हुई यह बात सीधे कलेजे में चिपक गई थी। मित्र वाकई भला आदमी निकला क्योंकि मैंने देखा कि उसके मोहल्ले के चौरसिया साहब उनकी बीबी पर खुलेआम चारो तरफ से रस की वर्षा कर रहे थे परन्तु मजाल है कि उन्होंने कभी भी इसका विरोध किया हो। मित्र में भलाई कूट -कूट के भरी थी। वे रास्ते चलते भी लोंगो का भला करने में विश्वास रखते हैं। फिर एक ऐसी घटना घटी जिससे मुझे भलाई के साइडफेक्ट देखने को मिले। बात कुछ ऐसी थी कि एक बार रास्ते पर मैं उनके साथ जा रहा था। सामने ...