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Showing posts from 2014

भलमनसाहत की चाहत

अरे वो भले आदमी हैं.… पडोसी के बारे में ऐसा सुनते ही जी हुड़क के रह गया। ये तो कहो कि डाक्टर ने रक्त परिवहन में ज़्यादा ट्रैफिक को देखते हुए बाईपास रुट (सर्जरी )बना दिया था, नहीं तो हृदयाघात होना तय था। उसी दिन से ठान लिया की मैं भी भला आदमी बन कर दिखाऊंगा। उसके लिए  सबसे पहले तो मैंने अपने एक तथाकथित भले मित्र के साथ रहना प्रारम्भ किया क्योंकि 'संगत से गुण होत है,संगत से गुण जाए। '.. ऐसा मैंने अपने  मनपसंद दारू के ठेके के सामने जो गांधी महाविद्यालय है,वहां की दीवार पर लिखा देखा था। शरीर में बह रहे देसी ठर्रे के साथ तैरती हुई यह बात सीधे कलेजे में चिपक गई थी।  मित्र वाकई भला आदमी निकला क्योंकि मैंने देखा कि उसके मोहल्ले के चौरसिया साहब उनकी बीबी पर खुलेआम चारो तरफ से रस की वर्षा कर रहे थे परन्तु मजाल है कि उन्होंने कभी भी इसका विरोध किया हो। मित्र में भलाई कूट -कूट के भरी थी। वे रास्ते चलते भी लोंगो का भला करने में विश्वास रखते हैं। फिर एक ऐसी घटना घटी जिससे मुझे भलाई के साइडफेक्ट देखने को मिले। बात कुछ ऐसी थी कि एक बार रास्ते पर मैं उनके साथ जा रहा था। सामने ...

'यथार्थ' का बलात्कार

अभी  हाथ में न्यूज़ पेपर लेकर बैठा ही था कि  दरवाज़ा जोर जोर से पीटने की आवाज़ आई, मैं समझ गया कि द्विवेदी जी आ गए हैं क्योंकि वही दरवाज़े पर इस तरह दस्तक देते हैं।  वो अलग बात है कि उनकी ऐसी खतरनाक दस्तक मेरे मन में दहशत भर देती है कि वे कहीं दरवाज़े सहित ही अंदर न आ जाएँ अतः मैं भाग कर दरवाजा खोलने के लिए उठा और दरवाज़े के  स्वतः खुलने से पहले ही उसे खोलने में कामयाब रहा। दरवाज़ा खोलना था कि द्विवेदी जी ने राकेट के जैसे कमरे में प्रवेश किया और सोफे को हिरोशिमा समझ कर  उस पर परमाणु बम की तरह धम्म से गिर पड़े। मैंने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास पहुंच कर ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए पूंछा, " कहिये कैसे आना हुआ द्विवेदी जी ?" उन्होंने मेरे खिचड़ी नुमा इस साधारण से प्रश्न का  मटन कोरमानुमा स्वादिष्ट उत्तर देते हुए कहा, "अजी इधर से गुज़र रहे थे तो सोचा तुमसे मिलते चलें इसी बहाने कुछ गपशप हो जाएगी और चाय पानी भी हो जायेगा। " अच्छे मेजबान का फ़र्ज़ अदा करते हुए मैं उनके चाय पानी और गपशप की  मांग पूरी करने में लग गया तब तक वो मेज पर रखे पेपर को उलट...